Read Time5 Minute, 50 Second

यूं ही चलते चलते मैंने रितिका से पूछ लिया था कि ‘पानीपूरी खाओगे’ , उसने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा- हाँ, जरूर, तुम जो खिला रहे हो ! हम रोड क्रॉस करते हुए पानी पूरी वाले के पास गए! दोनों पानीपुरी खाने लगे ! वैसे तो रितिका और मैं दोनों साथ-साथ कोचिंग जाते थे पर बातचीत नहीं होती थी! मैं सोचता था कि रितिका मुझसे बोले और शायद वह भी यही ! रितिका मेरे मकान मालिक की लड़की थी मैं उनके यहाँ नया-नया आया था ! मेरा रूम ऊपर था और रितिका का परिवार नीचे रहता था! मैं शहर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था, बस रूम से कोचिंग और कोचिंग से फिर रूम! आज पानी पुरी ने हमारी दोस्ती करा दी थी! वह पूरे रास्ते में ढेर सारी बातें करती रही और मैं टकटकी लगाकर सुनता हुआ उसे ही निहारता रहा ! पता नहीं आज घर जल्दी आ गया था ! साइकिल पार्किंग करके मैं अपने रूम में गया और ड्रेस चेंज करके टिफिन खोला ही था कि रितिका भी ऊपर छत पर आ गई, मेरे रुम के सामने टीन शेड लगे हुए थे और साइड में खुली छत थी ! मेरे रुम के आधे गेट खुले हुए थे और मैं भोजन करने लग गया गेट से रितिका सामने दिखाई दे रही थी टीशर्ट में बहुत खूबसूरत लग रही थी ! मेरी नजरें बार-बार उसी पर टिकी जा रही थी और वह भी मुझे देखती फिर नजरें हटा लेती! रात को सोया तो रितिका के बारे में ही मेरे मन में विचार आने लगे ! उसकी स्माइल उसका बात करने का एटीट्यूड और उसकी ड्रेस, सब के सब खुली आँखों में साफ -साफ दिखाई दे रहे थे! पता ही नहीं चला यह सब सोचते सोचते न जाने कब आँख लग गई! दूसरे दिन जब मैं कोचिंग के लिए तैयार होकर नीचे आया तो रितिका तैयार थी ! हमने अपनी साइकिले ली और निकल पड़े ! उसने अपनी चुप्पी तोड़ी और मुझसे पूछा – क्या हुआ चुप क्यों हो ? मैंने हँसते हुए कहा -कुछ नहीं , मैं ठीक हूँ और इसी तरह हमारी बातें शुरू हुई और कोचिंग पहुँच गए! हमारी क्लास छुटी तो student circle पर उसने रुकने को कहा! छोटा सा सर्किल और उस में लगे हुए फव्वारे और साइडों में लगे रंग बिरंगे फूल वाले पौधे, चारों तरफ स्टूडेंट्स की भीड़ और चाय की थड़ीयाँ , पानी पुरी के ठेले, आँखों में उम्मीदों की चमक लिये स्टूडेंट और उसी भीड़ में हम भी शामिल थे ! आज उसने पानी पुरी खिलाई थी मुझे! अब धीरे-धीरे हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे स्टडी में कहीं प्रॉब्लम होती तो उसे सॉल्व करते ! उसकी फैमिली में मैं अच्छा घुल मिल गया था! उसे जब कुछ भी बात कहना होता था तो कागज के टुकड़े में लिखकर मेरी खिड़की के अंदर डाल दिया करती थी ! उसके पास मोबाइल नहीं था और मेरे पास भी कीपैड वाला था! संडे को कोचिंग पर सुबह टेस्ट रहता था और इवनिंग हम घूमने जाया करते थे! पानीपूरी उसको बहुत पसंद थी सो हम रोज खाने लगे थे ; एग्जाम के टाइम पर हम साथ साथ पढ़ते थे , उसका भाई आठवीं बोर्ड में था वह भी हमारे साथ पढ़ाई करता था! जब भी हमको नींद आने लगती थी वह चाय बनाती, आँखों में आँखें डाल कर चाय की चुस्की लेना , किताबें खोल कर बातें करना और रात में मस्ती करना, रोज का काम हो गया था ! एक दिन उसका भाई पढ़ते -पढ़ते सो गया था और मुझे भी नींद आने लगी थी ! मैं भी पढ़ते- पढ़ते ही बेड पर लेट गया, मेरी आँखें लग गई थी ! उस पागल लड़की को न जाने क्या हुआ! उसने मेरे होठों से होंठ लगा दिये और मेरे हाथ कसकर पकड़ लिए, मेरी आँखें खुली तो मेरा होश ही उड़ गया था ! आज पहली बार वह इस तरह से , पर क्या करूं अब, जो हो ही गया तो ! मैंने कहा – “पागल हो क्या ” , वह शायराना अंदाज में बोली “पहले नहीं थी अब हो गई हूँ” ! थोड़ी देर तक हमारे बीच यह सब चलता रहा ! मेरे मना करने पर वह उसके रुम में चली गई, शायद उस पर उम्र का असर चढ़ रहा था , कसूर उसका नही था ये सब हार्मोन्स, , , मैं न जाने क्या-क्या सोचता रहा और सोचते सोचते ही सुबह हो गई! ! ! !
परिचय
नाम- ओम प्रकाश लववंशी
साहित्यिक उपनाम- ‘संगम’
राज्य- राजस्थान
शहर- कोटा
शिक्षा- बी.एस. टी. सी. , REET 2015/2018, CTET, RSCIT, M. A. हिन्दी
कार्यक्षेत्र- अध्ययन, लेखन,
विधा -मुक्तक, कविता , कहानी , गजल, लेख, निबंध, डायरी आदि
Post Views:
645
Wah sangam ji,,, bhut khub
Dil jeet liya,
Hmari yaadein bhi taja kr di,
Hearttaching story,, suprbbbbbbb
थोडा सा ट्वीस्ट अगर लग जाता तो एक पूर्ण वार्ता बन जाती और पाठक को अपनी और से कुछ अलग अलग अंत से वार्ता को आगे बढाने से मुक्ति मिल सकता था । धन्यवाद आपने अपनी ताकतवर कलम का परिचय दे दिया है।