प्रकृति के उपहार 

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rikhabchand
सूरज चाँद सितारे है प्यारे,
पेड़ पहाड़ ये झरने है सारे।
प्रकृति के उपहार है निराले,
ये सब मानव के है रखवाले।
बादल धरती पर वर्षा करते,
नदी ताल तलैया सब भरते।
सावन फुहारें बूँदों की जान,
तरंगिणी का कल कल गान।
सूरज जग को रोशन करता,
चँन्द्रमा से मिलतीे शीतलता।
पेड़,फल,फूल छाया प्रदाता,
प्रकृति की बढ़ती सुन्दरता।
खग कुल गाते कलरव गान,
सरगम स्वरों की मीठी तान।
कोयल गाती पंचमसुर गान,
जंगल में मंगल इसकी शान।
फूल बिखरते नित्य मुस्कान,
मकरंद करता पुष्प रसपान।
धरा ओढ़े हरियाली परिधान,
‘रिखब’गाता प्रकृति गुणगान।
#रिखबचन्द राँका
परिचय: रिखबचन्द राँका का निवास जयपुर में हरी नगर स्थित न्यू सांगानेर मार्ग पर हैl आप लेखन में कल्पेश` उपनाम लगाते हैंl आपकी जन्मतिथि-१९ सितम्बर १९६९ तथा जन्म स्थान-अजमेर(राजस्थान) हैl एम.ए.(संस्कृत) और बी.एड.(हिन्दी,संस्कृत) तक शिक्षित श्री रांका पेशे से निजी स्कूल (जयपुर) में अध्यापक हैंl आपकी कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ हैl धार्मिक गीत व स्काउट गाइड गीत लेखन भी करते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-रुचि और हिन्दी को बढ़ावा देना हैl  

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