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व्यथित मन में …
कोलाहल अलबेला है
निःसन्देह …
नव सृजन की बेला है..!!
पीर का दंश
जब पर्वत से बड़ा हुआ
हारा हुआ मन
नव उर्जा से खड़ा हुआ
जीत का…
जब ना कोई विकल्प होता है
विजय का
सिद्ध तब संकल्प होता है
सहस्त्र रश्मियां
नैनों में जगमगा रही
बन आशाओं के….
दीपक पथ दर्शा रही
किसने कहा तू अकेला है
निसंदेह…
नवसृजन की बेला है..!!
#तृप्ति नेमा माहुलेबालाघाट(मध्यप्रदेश)
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