आधी आबादी 

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ashok mahishware
दुनिया की जनसंख्या में आधी आबादी महिलाओं की है . दुनिया के प्रत्येक देश में इन की दशा व दिशा में भिन्नता है परिस्थितियां व परिवेश सहित परंपरागत मान्यताओं से यह प्रभावित होती है . इन सब के बावजूद भारतीय समाज मे नारी की दुर्दशा चिंतनीय है . चिंतनीय इस अर्थ में क्योंकि हम जगत गुरु हैं . चिंता इस अर्थ में क्योंकि “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता” के जनक हैं . हम नारी सत्ता आदि शक्ति के उपासक हैं . इन सब के बावजूद निर्लज्जता यहकि नारी समाज की इतनी दुर्दशा दुनिया के किसी देश में नहीं है . सीधे शब्दों में कहे तो नारी दुर्दशा के चलते न केवल हम दुनिया में कहीं मुँह दिखाने लायक ही नहीं रहे बल्कि दुनिया की नजरों में मुँह वाले भी नहीं रह गये .
हमारी सरकारें नारी समानता की पैरवी करते नहीं थकती किंतु कोई भी सरकार सत्ता में रहकर ऐसा नहीं करती . क्या सत्ता में आते ही सब को लकवा मार जाता है ?क्या इन की याददाश्त जाती है खो जाती है ?जैसा की फिल्मों में होता है सिर पर एक बूंद पानी गिरा नहीं की याददाश्त चली गई यहां तो सत्ता की लंका सिर से टकराती है तो याददाश्त का चला जाना अस्वाभाविक भी नहीं .
हमारी सरकारें पंचायत में नारी समाज को आधा हक देती हैं .छोटी सेवाओं में आधा हक देती है . किंतु प्रशासनिक सेवा में आधा हक देने तैयार नहीं . व्यवस्थापिका में आधा हक देना इन्हे  असंवैधानिक प्रतीत होता है . सरकारें जाति को आरक्षण तो दे सकती है किंतु समाज को नहीं ! क्या आज भी हम नारी को घरों में कैद कर रखना चाहते हैं ? क्या छोटे दायरों के पिंजरे में ही कैद कर रखना चाहते हैं ? क्या हमें वोट और सत्ता के ऊपर का कुछ भी नहीं दिखाई देता है ?
महिलाओं को अधिकार  ही सशक्त बना सकता है . राष्ट्रीय परिपेक्ष में महिला सशक्तिकरण के लिए राजनीतिक , प्रशासनिक , व सामाजिक क्षमता की आवश्यकता है ;इनके अभाव में सशक्तिकरण की बात थोथा नारा ही सिद्ध हो रहा है . हमें ज्ञात है कि महिला आधी आबादी है . आधी आबादी को हटाकर हम विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते . देश के विकास के लिए पुरुष शक्ति की आवश्यकता तो है , किंतु नारी शक्ति की महती आवश्यकता है . पिंजरे में बंद पक्षी घूटता है और पर्दे में नारी .बराबरी का अधिकार न देना पिंजरे में रखने से ज्यादा कुछ नहीं .
सरकार के तीनों अंगों पर आधी आबादी का अधिकार होना चाहिए . नहीं देने का क्या अर्थ है:- यह कि हमारी नारी इसके योग्य नहीं ? यह कि हम नारी को पुरुषों से आगे चलते नहीं देखना चाहते ? या यह की चहारदीवारी में ही रखना चाहते हैं ?या यह की नारी को आज भी दासत्व मे देखना चाहते हैं ?
” बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा महिलाओं को सशक्त बना रहा है !आज हमें -बेटी आओ हक ले जाओ – का नारा नहीं कृति की आवश्यकता है .
बेटी को पिता की संपत्ति में बराबर का हकदार बना देने से सशक्तीकरण हो रहा है या नहीं ? विवेचना का विषय है किंतू सामाजिक ताना-बाना बिखर अवश्य रहा है . नारी को खैरात नहीं अधिकार चाहिए .
बहुधा देखा जाता है  कि भारतीय समाज में विवाह पश्चात बेटी अपने पिता कुल से बहिष्कृत हो जाती है . इससे बड़ा घोर अन्याय महिलाओं के साथ दूसरा हो ही नहीं सकता . विवाह  मंगल संस्कार है तो यह अमंगल कारी अभिशाप क्यों ? यदि मंगल है  तो पति कुल के साथ उसे पिता कुल के भी सारे अधिकार मिलना चाहिए . जबकि ऐसा नहीं होता . नारी की असली उ
उपेक्षा यहाँ से प्रारंभ होती है . वर्तमान समाज में यह परंपरा सर्वमान्य रूप से प्रचलित है .  इस तरह की अमंगल कारी जड़ों को समूल उखाड़े बिना बिना आधी आबादी का भला कदापि नहीं हो सकता .
#अशोक महिश्वरे
गुलवा बालाघाट म प्र
 

#परिचय

नाम -अशोक कुमार महिश्वरे
पिता स्वर्गीय श्री रामा जी महिश्वरे
माता  स्वर्गीय शकुंतला देवी महिश्वरे
जन्म स्थान -ग्राम गुलवा पोस्ट बोरगांव, तहसील किरनापुर जिला बालाघाट मध्य प्रदेश
शिक्षा स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य एवं अंग्रेजी साहित्य ,बीटीआई व्यवसाय :मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर वर्तमान में शासकीय प्राथमिक शाला टेमनी तहसील लांजी जिला बालाघाट मध्य प्रदेश में पदस्थ हूँ
लेखन विधा गद्य एवं पद्य
प्रकाशित पुस्तकें: प्रकाश काधीन १/साझा काव्य संग्रह २/नारी काव्यसंग्रह
प्रकाशक साहित्य प्रकाशन झुंझुनू राजस्थान
 

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