कौन है गयाप्रसाद सनेही जी, जिन्होंने आरम्भ किया कवि सम्मेलन

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कवि सम्मेलन के इतिहास का आरंभ उत्तर प्रदेश के कानपुर से होता है। भारत का पहला कवि सम्मेलन साल 1923 गयाप्रसाद ‘सनेही’ जी ने कानपुर में आयोजित करवाया था। इसमें 27 कवियों ने भाग लिया। इसके बाद कवि सम्मेलन की परंपरा देश-दुनिया में चल निकली। आज अमेरिका, कनाडा, दुबई जैसे लगभग ढाई दर्जन देशों में हिन्दी कवि सम्मेलन बड़े चाव से सुने जाते हैं। सनेही जी की अध्यक्षता में पूरे देश में सैंकड़ो कवि सम्मेलन हुए। उनके संरक्षण में कवियों ने खुलकर मंच पर देश की आज़ादी के लिए योगदान दिया। जहाँ तक कवि गोष्ठियों की बात है तो वर्ष 1870 में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता वर्धनी संस्था बनाई। यही पहली कवि गोष्ठी कहलाई।
‘सनेही जी’ (1883-1972) उन्नाव के हड़हा के रहने वाले थे। वे हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन साहित्यकार थे। आपके पिता पंडित अवसेरीलाल शुक्ल तथा माता का नाम श्रीमती रुक्मिणी देवी था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले (बैसवारा) के हड़हा नामक ग्राम में हुआ था। नौ वर्ष की आयु में उनका उपनयन संस्कार हुआ तथा तेरह वर्ष की अवस्था में उन्नाव के ही जैतीपुर ग्राम के निवासी स्वनामधर्मा श्री पंडित गयाप्रसाद जी की पुत्री भिक्षुणी देवी के साथ उनका विवाह हुआ था।
वे उन्नाव टाउन स्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत थे। 1921 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के आह्वान पर उन्होंने अध्यापकीय कार्य छोड़ दिया। वे आज़ादी की लड़ाई में कवि सम्मेलन के माध्यम से पूरी तरह से जुड़ गए। इससे पहले वे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अनुरोध पर कानपुर आकर रहने लगे। इसके बाद उनका अधिकांश जीवन कानपुर में बीता। उनके साप्ताहिक पत्र ‘प्रताप’ में भी कविताएं लिखीं। नौकरी के दौरान उन्होंने त्रिशूल, तरंगी व अलमस्त के उपनामों से तमाम रचनाएं लिखीं। उन्होंने अपना निजी प्रेस खोलकर काव्य संबंधी मासिक पत्र ‘सुकवि’ का प्रकाशन आरंभ किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने हिन्दी के सैंकड़ो कवि दिए। उन्होंने कानपुर निवास के दौरान देश भर में सैंकड़ो कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता की। उनकी अध्यक्षता में कलकत्ता में हुए कवि सम्मेलन में रवींद्र नाथ टैगोर ने भी काव्यपाठ किया था।
कवि सम्मेलन की ऐतिहासिक यात्रा में पहले मानदेय या पारितोषिक तय करने की परंपरा नहीं थी। उस दौर में आयोजक द्वारा दिए गए बंद मुट्ठी में पत्र-पुष्प को कविगण सहर्ष स्वीकार कर लेते थे। मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह ’दिनकर’, जय शंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’, गिरिजाकुमार माथुर, सोहनलाल द्विवेदी, रमई काका, हरिवंश राय बच्चन जैसी विभूतियों ने इसी प्रकार काव्य पाठ किया।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार, इन्दौर (म.प्र.)

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