एक गीत लिखा है मैंने

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vivek kvishwar
एक गीत लिखा है मैंने 
जो कल हो जायेगा इतिहास,
गाना है तो आज ही इसे 
अपने स्वर में गा डालो।
 
धुन भी तुम्हे बनानी है 
और वाद्य तुम्हे ही हैं चुनने,
आरोह और अवरोह सभी 
इसमें तुमको ही हैं बुनने।
 
मेरे शब्दों पर फिर चाहे तुम
ज्वाल धरो या बर्फ़ रखो,
आक्रोश मेरा उनमे सुलगा है 
उनमे रंग भरो या श्वेत रखो।
 
मैं नहीं जानता; और क्यों जानूं 
किस-किसको छूए मेरी बात,
दायित्व तुम्हे मैं सौंप रहा 
ना हो इसके भावों से घात।
अधरों से तुम इसे छुआ दो 
फिर बादल से जा बांधो,
दिशा-दिशा फिर गूँज उठेगी 
जो इसको मन से साधो।
 
.नाम: विवेक कवीश्वर 
नयी दिल्ली
सम्मान:
प्रकाशन: 1 काव्य-संकलन
1 ग़ज़ल और नज़्म संकलन
1 दोहा और हाइकु संकलन
1 नाटक / फिल्म स्क्रिप्ट
8 काव्य के साझा संकलन

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