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मां की मै नाजों की पाली,
मै पापा की लाडली..
उड़ना चाहूं दूर गगन
छूना चाहूं आसमान
चाहूं हिरनी सी भरूं कुलांचे,
कभी मोरनी चाल चलूं..
कभी तितलियों संग भागुं मैं,
फूलों संग कभी सवाल करूं..
पूछूं क्यों खिलते हो तुम,
जब अगले दिन मुरझाते,
अपनी सुन्दरता खोकर
हासिल तुम कर क्या पाते..
पंछि से मांगू मै उनके”पर”
उनसे पूछूं एक सवाल,
तुम ऐसे कैसे उड़ती हो,
मां घर से देती है, निकाल?
मेरी मां क्यों इतना डरती,
जैसे पिंजरे में मुझको रखती..
घर से बाहर न निकलने देती,
न जाओ बिटिया ये क्यों कहती..
कहती कोई बाज मिले ना,
तुझ पर उसकी नज़र टिके ना,
देख अकेली झपट पड़े ना,
गिद्ध नज़र वो डपट पड़े ना..
तुम्ही बताओ मेरा बचपन,
क्या फिर लौट के आएगा..
बचपन डर कर यूं बिते तब,
होकर युवा डराएगा..
सुनो बताओ, इन बाजों से,
डर तुम्हे नहीं क्योंकर लगता,
जबकि गगन विशाल में विचरण,
करती रहती हो तुम सदा..
अपने”पर” ही दे दो मुझे तुम,
मै भी तुम्हारे संग उडूं..
या धरती के हर बाजों का,
मै एक दिन, खातमा करूं..

#मधु पांडेय
परिचय:
नाम – मधु पांडेय
साहित्यिक उपनाम – मृदुला
जन्मतिथि – 17 मई 19- 80
वर्तमान पता – अनिल नगर, चितई पुर वाराणसी
शिक्षा – ग्रेजुएट इतिहास ऑनर्स
कार्य क्षेत्र -हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत
विधा – श्रृंगार रस,प्राकृतिक सौंदर्य, सामाजिक भ्रष्टाचार
अन्य उपलब्धियां- संगीत क्षेत्र में कई
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वाह्ह मधूदी ,, कितनी सुन्दर रचना,, सर्वोत्कृष्ट , कण्ठ से ध्वनि निकले तो जादू,, कलम कोरे कागज पर पडे तो जादू,,, सच! जादूगरनी हो आप दीदू , ।। शुभी।