माथा चूम आता हूं

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इश्क़ में पावनता की जन्नत कुछ ऐसे घूम आता हूं
महबूब को भर कर बाहों में, मैं माथा चूम आता हूं
उनको पाने की जिद केवल इतनी थी
उनके करीब आकर के उनकी सांसे गिरने थी
उनको छूकर ही केवल मैं खुद को भूल जाता हूं
महबूब को भर कर बाहों में, मैं माथा चूम आता हूं
यौवन से कोई बेर नहीं पर हवस की कोई प्यास नहीं है,,
रूह से उनकी इश्क़ हुआ है, जिस्म की कोई आस नहीं है,,
उन के बदन को छू कर केवल मैं पारस बन जाता हूँ,,
इश्क़ में पावनता की जन्नत कुछ ऐसे घूम आता हूं
महबूब को भर कर बाहों में, मैं माथा चूम आता हूं
कुछ हासिल करना ही केवल सच्चा प्यार नहीं होता
सात फेरों का मतलब ही दुल्हन का श्रृंगार नहीं होता
बिना सिंदूर ही उसकी मांग को वचनों से भर आता हूँ
इश्क़ में पावनता की जन्नत कुछ ऐसे घूम आता हूं
महबूब को भर कर बांहों में, मैं माथा चूम आता हूं

#सचिन राणा हीरो

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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