क्यूं ना जाति का काॅलम हटा दिया जाये

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lalit sinh

आरक्षण नाम तो सबने सुना ही होगा एक शब्द छोटा सा है। जो कि दलितों को आगे बढ़ाने में बहुत ही सहायक हैं। आरक्षण किसी का भी पुश्तैनी हक नही है और ना ही विरासत है!

    अब सवाल ये उठता है कि आरक्षण का क्या सदुपयोग हो रहा है। इसको लागूं करने की नीति क्या है?
    आरक्षण को बाबा साहब ने दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों के लिये लागूं किया था जिससे कि उनका शोषण बन्द हो और वो आगे बढ़ सके!
    क्या अब आरक्षण की आवश्कता है? मेरे ख्याल से तो नहीं,आज आप सबने दलितों को ये कहते सुना होगा हम किसी से कम नही है और हमें किसी के एहसान की जरूरत नहीं है हमें अपना हक चाहिए! उनसे कोई ये पूंछे आरक्षण आपका हक कैसे हो गया? ये तो दस वर्षो के लिये था आज कितने वर्ष हो गये है?
   आरक्षण के कारण ही आज योग्य लोग पीछे होते जा रहे है! अगर बात करें नौकरियों की तो वहां तय रहता है कि कितनी सीटे पिछडी और दलितों के लिये है । देखा जाये तो जब दलित लोग साथ बैठकर सबके पढाई करते है तो बराबर ही तो पढ़ रहे है कहाँ हो रहा है शोषण? वो ही बताये?
   क्या आरक्षण से सबका भला हो रहा है हर विभाग में, अगर प्रोफेसर के लिये अर्हता देखी जाये तो परास्नातक ५५% अंको के साथ सामान्य वर्ग के लिये जरूरी हैं और दलित ५०% आवश्क है दोनों जब अध्यापक बन जाते है तो ५०% वाला और ५५% वाला कौन बेहतर पढ़ा सकता है तो सबका जवाब होगा ५५% वाला क्यूंकि वो ज्यादा योग्य है।
   इसी तरह कोई भी विभाग देख लीजिये सबमें दलितों को फीस में छूट आयु में छूट और सीट तक रिजर्व है कि कितने दलित और कितने पिछड़े लोग लिये जायेगे,अब मानो दलितों की मेरिट कम बनती है मगर सीट रिजर्व होने के कारण कम नम्बरों वाले को ही नौकरी दे दी जाती है और सामान्य वर्ग में मेरिट अधिक जाने के कारण प्रतियोगिता बढ़ती जाती है और इसी के साथ बेरोजगारी भी बढ रही हैं।
    अब पेपर फीस की बात करें तो दलितों से कम ली जाती है ये क्यूं? सरकार बताये?
क्या इनके पेपर लेने में कम खर्चा आता है?
माना कि आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते है लेकिन क्या बाकी वर्ग नहीं हो सकते कमजोर?
   जिसमें लगन होती है उसका राह खुद बनता जाता है! बाबा साहब उसी के उदाहरण है। आज सब लोग उनका लिखा मान रहे है मगर ये क्यूं नही मान रहे कि दस साल तक के लिये लिखा था उन्होने! अब सरकार को ठोस कदम उठाने होगे,वोट की लालच ना करके समानता लानी होगी! इसका एक ही उपाय है “किसी भी नौकरी में जाति का काॅलम ही हटा दिया जाये”, जो पेपर में ज्यादा नम्बर पाये वही चुना जाये!
   इससे थोड़ी दिक्कत तो होगी मगर नोटबन्दी की तरह कुछ सालों में सब समर्थन करेगे। और छुपी प्रतिभाये निकलकर सामनें आयेगे, जिससे देश आगे बढ़ेगे। कोई खुद को ठगा सा महसूस नही करेगा।

       #ललित सिंह

परिचय :ललित सिंह रायबरेली (उत्तरप्रदेश) में रहते हैं l आप वर्तमान में बीएससी में पढ़ने के साथ ही लेखन भी कर रहे हैंl  आपको श्रृंगार विधा में लिखना अधिक पसंद है l स्थानीय पत्रिकाओं में आपकी कुछ रचना छपी है l 

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