लोकतंत्र का पर्व

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rupesh kumar
लोकतंत्र का पर्व अनुपम , होता है मतदान बड़ा ,
करता है निर्माण राष्ट्र का , शांति और समृद्धि भरा ,
जाति धर्म का भेद भाव तज , चुनता है अपना नायक ,
सत्ताधारी बने विपक्ष वा , होवे नही वे खलनायक ,
राष्ट्रहित सर्वोपरी रहे , आत्मसेवी हो नही नेता ,
वर्ग वाद परिवारवाद से अलग , राष्ट्रहिल नितचेता
जाति धर्म और वर्गाधारित , राजनीतिक हो संहारक ,
करे विकास हो शांतिग्राही , वही नेतृत्व हो वर लायक ,
जाति धर्म आशिक्षा की ज़ड़ , खोद बनाए देश महान ,
समरसता तब विलसित होगी , पायेगे हम खोया मान ,
राजनीतिक आपराधिजन से ,अच्छादिन हो रही अमलान ,
राहु ग्रसित रवि ज्यो जगती को , देना पाता रश्मी का धान ,
प्रवृति बहुबलियो को , देना कभी नही मतदान ,
भले ही नोटा का प्रयोगकर , बनना पड़े तुम्हे नादान ,
लोकतंत्र का पर्व फलित होगा जब , जन होंगे सुजान ,
य़ांदो की वर्षा मे भीगकर , रोग ग्रस्त न हो अज्ञान ,
जागरुक और नीतिज्ञ बनकर ,  चुने राष्ट्र का दक्ष नायक ,
विकसित राष्ट्र बनेगा भारत सभी शांति सुख प्रदायक !

    #रुपेश कुमार

परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।

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