घर खुली जगह छत, पूरा आसमान, सोने को हरी-भरी दूब ओढ़ने को रजाई चमकते जुगनूओं की। फटी रजाई में कहीं-कहीं झांकते स्वच्छ दोपहरी सूखे मेघ, साथी की न कोई चिन्ता पवन हिलाए-डुलाए-नचाए, और उसकी लय पर थिरकता एक गरीब अधम मानव का मैला-कुचैला नंगा शरीर, छप्पर की छत से झांकते […]