सुनामी का नाम लेकर
सागर के पानी में चढ़कर
कभी तुम आते हो
भूकंप का मौखटा लगाकर
जाते हो तुम केवल
जीव- जंतुओं का नाशकर .
आने-जाने का समय
बता नहीं सकता कोई भी
तुम्हे रोक नहीं सकते
चाहे कितना भी शक्ति लगा ले .
पहचानते नहीं हो ,किसी के साथ
परिचय बढ़ाते भी नहीं
वृद्ध- वृद्धा,बच्चे ,भेड़-बकरियां
सभी को ले जाते हो
जैसे कर भी .
न तुममे माया है ,न दया ही
माँ की छाया को भी हटाते हो
पति-पत्नी में भी विच्छेद कराते हो .
हर्ष-आनंद की गृहस्थी में
तुम दुःख की वर्षा करते हो
गरीब-धनी,स्त्री-पुरुष
किसी में भी विभेद नहीं करते हो
#चंद्र मोहन किस्कू