सीमा अपने परिवेश में माता-पिता के कुंठित विचारों से बहुत दुखी थी। वे उसकी शिक्षा बीच में ही रोक कर शादी कर देना चाह्ते थे क्योंकि उनके समाज में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था।परन्तु वह क्या करे ? उसे तो अपनी शिक्षा पूरी करनी थी। कई तरह के विचार उसके मन में उथल-पुथल मचा रहे थे। जिसकी वजह से वह कक्षा में ध्यान नहीं दे पा रही थी । सामाजिक ज्ञान की शिक्षिका उसे दो तीन दिन से देख रही थी।आखिर उन्होंने पूछ ही लिया। सारी बात सुनने के बाद उन्होंने सीमा को समझाया,”तुम्ही को निर्णय लेना है ।तुम स्त्री हो इस बात से घबरा कर पीछे नहीं हटना ।”
परेशानी में उसने पूछा,” तो आप ही बताईये मैं क्या करुँ?”
तब पुनः उन्होंने कहा कि चिन्तन और मनन से खुद को पहिचानो। तुम स्वयं क्या चाहती हो? किसी के दबाव में आकर खुद को पराधीन ना बनाओ। जिस तरह से पुरुष वर्ग आज भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र है और अपने निर्णय स्वयं लेता है उसी तरह से स्त्री को भी चाहिये कि वह शिक्षित होकर अपना जीवन यापन करे। सिर झुका कर नहीं, सिर ऊँचा करके जीना सीखे ।
दूसरे दिन विद्यालय जाते समय उसके चेहरे पर एक अनोखी विश्वास की चमक थी ।
#रेणु चन्द्रा माथुर