माटी के संग माटी बन खुद माटी में रम जाते हैं, अभिनंदन उन मानस का जो रोटी हमें खिलाते हैं। तपती धूप उन्हें क्या कहती,बादल भी झुक जातें हैं, तूफानों की जुर्रत क्या,वो आकर हाथ मिलाते हैं, ऊसर बीज बने इक पौधा,ऎसे उसे सहलाते हैं। अभिनन्दन उन…॥ बच्चों की किलकारी […]