ज़रा-सी ठेस लगती है तो शीशा टूट जाता है,
मग़र क्यूँ आइने को साथ पत्थर का ही भाता है।
उसी को जानती है मानती है पूजती दुनिया,
अँधेरी बस्तियों में जो बुझे दीपक जलाता है।
लहर की प्यास क्या जाने वो इक मासूम-सा बच्चा,
जो टूटे साहिलों पर भी घरौंदों को सजाता है।
मेरी आवारगी बेपर्द है उस शख्स पर जब से,
नज़र मिलते ही जाने क्यूँ निगाहें वो झुकाता हैl
नहीं है जग में उससे बढ़ के कोई भी ख़ुदा यारों,
ग़मों की रात में काँधे से जो हमको लगाता है।
वो जुगनू ही सही,लेकिन उसे पुख़्ता भरम खुद पर,
अँधेरी रात में वो चाँदनी-सा जगमगाता है।
मैं अपना वास्ता देकर उसे खामोश तो कर दूँ,
सुना है उसके अश्क़ों से ख़ुदा मोती बनाता है।
चलो अब देख लें चलकर `विफ़ल` हम उसके मक़तल को,
गरेबाँ चाक करने को कोई फिर से बुलाता हैll
(शब्दार्थ:मक़तल-क़त्लगाह)
#ब्रजेश शर्मा ‘विफल’
परिचय:ब्रजेश शर्मा का साहित्यिक उपनाम-विफल हैl आपकी जन्मतिथि-१ अगस्त १९६५ और जन्म स्थान-मेरठ (उत्तर प्रदेश) हैl वर्तमान-स्थाई निवास झाँसी स्थित दिलदार नगर (उ.प्र.) में हैl बीएससी के साथ ही बीएड़,एमए(अंग्रेजी साहित्य) और डिप्लोमा इन कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग की शिक्षा भी आपने प्राप्त की हैl कार्यक्षेत्र-भारतीय रेल विभाग में में उप मुख्य टिकिट निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैंl लेखन में आप गीत,गज़ल तथा दोहे रचते हैंl प्रकाशन में आपके खाते में निजी तौर पर तो कुछ नहीं है,पर साँझा काव्य संकलन (क़दमों के निशान,सत्यम प्रभात एवं काव्योदय आदि)हैंl कई अंतरताना पत्रिकाओं सहित तथा समाचार पत्र-पत्रिकाओं में भी गाहे-बगाहे रचनाओं का प्रकाशन होता हैl यदि सम्मान
की बात की जाए तो झुंझनू से `साहित्यकार सम्मान` के अतिरिक्त `काव्यश्री`सम्मान,हिंदी सागर सम्मान,करनाल से `ग्रेट अचीवर्स अवार्ड`,युग सुरभि सम्मान,साहित्य भूषण सम्मान-२०१७ तथा श्री रामसेवक सम्मान आदि भी आपको मिले हैंl उपलब्धि यही है कि,शासकीय कार्य में हिंदी के उपयोग के लिए आप नगद ईनाम एवं प्रमाण-पत्र ले चुके हैंl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-वैसे तो स्वान्तः सुखाय ही है,पर रचना किसी के मन को छू ले,तो क्या बात है। साथ ही सकारात्मक बदलाव,सामाजिक चेतना,मानवीय संवेदनाओं का प्रादुर्भाव भी इनके लेखन में निहित अर्थ है।