चलते-चलते थक गए थे पाँव,
दिख नहीं पाई कहीं दरख्त की छाँव
रोजी-रोटी की तलाश में,
छोड़ आया था गाँव
पर मिल कहाँ पाया,
कोई रहने का ठाँव
पड़ोस के दीनू काका,
के कहने पर ही तो
आ गया था महानगर में,
औकात से कुछ अधिक
कमाने की कामना में,
पर अभी काम मिला नहीं।
विवशता थी काका की
झुग्गी में जगह नहीं
तीन बच्चों और घरवाली
का साथ है
जैसे-तैसे बीतती रात है
जल-पान उन्होंने करवाया
असमंजस में मैंने अपना
कदम बढ़ाया
काम ढूँढने कल भी जाना है
पर अभी समस्या रात
बिताना है आखिर,
अँधेरा तो होना ही था
पाँवों को भी आगे बढ़ने
से जबाब देना ही थाl
फुटपाथ पर बैठा एक बूढ़ा भिखारी
भाँप गया था दुविधा सारी,
बैठने का करके इशारा
खिसक गया
पीने के पानी की बोतल
हाथ में पकड़ा गया,
प्लास्टिक के एक टाट को
फैलाकर
धीरे-धीरे बोला फुसफुसाकर
अभी भीड़ कम है सोने
की जगह रोक लो
दिनभर के थके हो लेटकर थकान मिटा लो,
विवशता में और विकल्प था नहीं
थैला सिरहाने रख लेट
मैं गया वहीं
नींद तो आई नहीं पर,
सोच रुकी नहीं
आज का रैन बसेरा
कल तो रहेगा नहीं
मेरे जैसा थका हारा
और आएगा,
रात का विश्राम ले
आगे बढ़ जाएगा
फिर जहन में एक निश्चय आ गयाl
गाँव का घर और
खेत मन को भा गयाll
परिचय: श्रीमती पुष्पा शर्मा की जन्म तिथि-२४ जुलाई १९४५ एवं जन्म स्थान-कुचामन सिटी (जिला-नागौर,राजस्थान) है। आपका वर्तमान निवास राजस्थान के शहर-अजमेर में है। शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र में आप राजस्थान के शिक्षा विभाग से हिन्दी विषय पढ़ाने वाली सेवानिवृत व्याख्याता हैं। फिलहाल सामाजिक क्षेत्र-अन्ध विद्यालय सहित बधिर विद्यालय आदि से जुड़कर कार्यरत हैं। दोहे,मुक्त पद और सामान्य गद्य आप लिखती हैं। आपकी लेखनशीलता का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है।