हिन्दुस्तां वतन है, अपना जहां यही है। यह आशियाना अपना जन्नत से कम नहीं है॥ उत्तर में खड़ा हिमालय रक्षा में रहता तत्पर। चरणों को धो रहा है,दक्षिण बसा सुधाकर। मलयागिरि की शीतल समीर बह रही है। हिन्दुस्तां…, यह आशियाना…॥ फल-फूल से लदे तरुओं की शोभा न्यारी। महकी हुई है […]
sharma
शोषण,तापन,द्रवण ये,सम्मोहन,उन्माद। पञ्च बाण से चोट कर,सुने नहीं फरियाद। सुने नहीं फरियाद,सखा ऋतुराज मिल गया हँसता खड़ा अशोक,नवल सहकार खिल गया मुस्काता राजीव,मल्लिका करती पोषण। सौरभ से मिल जूही,कर रही है उर-शोषण। आली! वृन्दावन चलें,जहाँ बसें रसराज। पीछे-पीछे आएगा,बौराया ऋतुराज॥ बौराया ऋतुराज,कली रसवन्ती होगी मोहन की मुरलिया,आज गुणवंती होगी […]