युग सृजन की नव कड़ी को जोड़ती मैं, कुप्रथा की बेड़ियों को तोड़ती मैं। रश्मियों को मैं सदा आहूत करती, रुख हवाओं का प्रभंजन मोड़ती मैंll दीप को देकर सहारा दीप्त करती, मैं सदा नव मल्लिका में ओज भरती। आँधियाँ-तूफान मेरे हमसफर, काल हो-कलिकाल हो,मैं नहीं डरतीll हम अनल में […]