हवा,घटा नभ,चन्द्र चीर उड़ते पक्षी नदिया का नीर, जब रह-रहकर छू जाते हैं… कुछ शब्द यूँ ही, गिर जाते हैं…l उदधि हिंडोले सूरज की पीर, परवत का पौरूष धरती का धीर, जब रह-रहकर छू जाते हैं… कुछ शब्द यूँ ही गिर जाते हैं…l नव कोपल की शैशव-सी गात, हिलती शाखों […]
lili
मैं एक गृहिणी हूँ,और हिन्दी को राष्ट्रभाषा रूप में प्रचारित एंव प्रसारित होने और न हो पाने के कारणों पर मेरा दृष्टिकोण,भाषा अधिकारियों से वैभिन्यता रखता हो,उनकी दृष्टि में उतना तर्कसम्मत और वैज्ञानिक न हो,इसके बावजूद मेरा दृष्टिकोण एक आम भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व अवश्य करता है, ऐसा मेरा मानना […]