इंसान इंसान का दुश्मन हुआ, मोहब्बत और इखलास सब भूल गया। अपने मतलब के लिए, तहजीब और इंसानियत भूल गया।। जाने कैसी सीख में लगा, मजहब और ईमान गया। ऐसा भटका है राह-ए-तालीम से, खुद ही अपना घर भूल गया।। चारों तरफ फैला शैतानियत का जोर, रिश्वतखोरी का है बोलबाला। […]
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संसार अगर एक रंगमंच है, तो हां, मैं उसका एक पात्र.. मुखौटा,चरित्र,किरदार,अभिनय और भूमिका हूँ। बचपन,जवानी,वृद्धावस्था, के पड़ावों से गुजरती जिन्दगी.. के बीच मैं कब पुत्र से पिता, दादा,नाना,मामा और चाचा.. बन जाता हूँ, कुछ पता ही नहीं चलता। पात्रों की जरूरत के हिसाब से, भूमिकाओं को निभाते-निभाते.. मैं अपने […]