पेट की ज्वाला उसकी मजबूरी है, जीने की तृष्णा ने उसे यूं आसक्त कर रखा है कि वह जीने के लिए रोज मर रही है, मरने को हर दिन संवर रही है। खुद को जिंदा रखने को, वह भोग बन गई है। अरमानों का रंग चढ़ाने को, मुर्दों-सी तन गई […]
लोकतंत्र की माँग है,सकल देश हो एक, जनप्रतिनिधि सेवक बने,जाग्रत रखें विवेक। जनसेवक को क्यों मिले,नेता भत्ता आज, आम आदमी बन रहे,क्यों आती है लाज ? दल-दलबंदी बंद हो,हो न व्यर्थ तकरार, राष्ट्रीय सरकार हो,संसद जिम्मेदार। देश एक है,प्रान्त हैं,अलग-अलग पर संग, भाषा-भूषा-सभ्यता,भिन्न न दिल हैं तंग। निर्वाचन हो दल […]