ठोकर खाता हूं,अश्क भी बहाता हूँ, गिरता हूँ,उठता हूँ,पर शान से चलता हूँ। न भय खाता हूं,न ही थोड़ा रुकता हूँ, खुले आसमान के नीचे सीना तान के चलता हूँ। जब भी सोचता हूं, दुनिया से घबराता हूँ। मुश्किलें तो साज हैं, जिंदगी भर आएगी.. गिरते उठते भी मुझे, एक […]
काव्यभाषा
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