ठोकर खाता हूं,अश्क भी बहाता हूँ,
गिरता हूँ,उठता हूँ,पर शान से चलता हूँ।
न भय खाता हूं,न ही थोड़ा रुकता हूँ,
खुले आसमान के नीचे सीना तान के चलता हूँ।
जब भी सोचता हूं,
दुनिया से घबराता हूँ।
मुश्किलें तो साज हैं,
जिंदगी भर आएगी..
गिरते उठते भी मुझे,
एक दिन मंजिल मिल जाएगी।
दुनिया में हम आए हैं तो,
अब जीना ही पड़ेगा..
जिंदगी में अगर जहर है तो,
हंसकर पीना ही पड़ेगा।
जिंदगी जख्मों से भरी है,
वक्त को मरहम बनाना सीख लूँ।
हारना तो मौत के सामने है,
फ़िलहाल जिंदगी से जीना सीख लूँ।
#प्रमोद बाफना
परिचय :प्रमोद कुमार बाफना दुधालिया(झालावाड़ ,राजस्थान) में रहते हैं।आपकी रुचि कविता लेखन में है। वर्तमान में श्री महावीर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय(बड़ौद) में हिन्दी अध्यापन का कार्य करते हैं। हाल ही में आपने कविता लेखन प्रारंभ किया है।
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धन्यवाद