खोया हुआ अपना,
बचपन ढूंढता हूँ..
पचपन की बातें,
नहीं लगती सयानी।
अभिमानों में अकड़ी,
जकड़ी जिंदगानी..
बंधनों में बंधी,
रेत होती कहानी।
वो चाँदी की थाली,
मिटटी के ढेले..
ईमली के चिएं,
नीम की निम्बोली।
कागज के रॉकेट,
पर ऊँची उड़ानें..
पतंगों के जोते,
हवाओं की चालें।
बस्ते का बोझा,
मीलो ही ढोना..
लड़ना झगड़ना,
जी भरके रोना।
कबड्डी,वो लंगड़ी,
घुटनों का छिलना..
नदी-पहाड़ों के,
संग साथ चलना।
छुपा-छाई में छुपना,
पकडंपाटी पकड़ना..
सुबहों की कट्टी,
शामों की बुच्ची।
कभी रेत में,
घरोंदे बनाना..
मिट्टी के घोड़े,
बारातें सजाना।
कभी ख्वाब में,
भूतों से मिलना..
परियो की दास्ता,
हँसना हंसाना।
स्याही दवात से,
कॉपी चितरना..
पेन्सिल से लिखना,
रबड़ खूब घिसना।
कॉमिक पढ़ना,
वेताल समझना..
चाचा चौधरी के,
साबू से मिलना।
पीपल के पत्ते,
पिंगानि बनाना..
आम के पत्तो से,
झालर सजाना।
रोटा पानी के,
बहुत खेल खेलै..
गुड्डे-गुड्डों की शादी,
मंडप सजाना।
खेल-खेल में नए,
रोज पाठ पढ़ना..
असल जिंदगी के,
सही माने समझना।
बचपन से अब तक,
जिए जिंदगी के हिस्से..
जर्रे-जर्रे भरे हैं किस्से,
खोया बचपन ढूंढता हूँ।!
#अरुण कुमार जैन
परिचय: सरकारी अधिकारी भी अच्छे रचनाकार होते हैं,यह बात
अरुण कुमार जैन के लिए सही है।इंदौर में केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग में लम्बे समय से कार्यरत श्री जैन कई कवि सम्मेलन में काव्य पाठ कर चुके हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त सहायक आयुक्त श्री जैन का निवास इंदौर में ही है।
बचपन तैर गया आंखों के आगे!!!! अद्भुत रसपूर्ण रचना !!
अद्भुत