जल की बात:::कल की बात

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jagdish chandra shreevastav

शुरुवात एक बहुत छोटी सी स्मृति से करना चाहता हूँ, हम 14 वर्षों तक किराए के 2 कमरों के मकान में रहे और चाह कर भी कई भौतिक सुविधाओं का सुख स्थान के अभाव में नही ले पाए।अगर हमलोग किसी भी वस्तु के बारे में सोचते भी तो उसमें तमाम तरह की दुश्वारियो का अनायास ही सामना करना होता था जैसे-बिजली की समस्या कम जगह की समस्या पानी की टंकी न होने की समस्या आदि आदि…लगभग 4 वर्ष पूर्व हमारी माताजी की दृढ़ इच्छाशक्ति और पिताजी के परिश्रम के फलस्वरूप हमारा भी खुद के बड़े घर मे रहने का ख्वाब फलीभूत हुआ।घर की हर छोटी मोटी जरूरत के सामानों के बाद हमारे भी घर RO purifier आ ही गया और आते ही किचन के एक कोने में शाही बादशाहत कायम कर लिया
किन्तु पहले दिन से ही इसकी कार्यप्रणाली को देख कर मैं बड़ा चिंतित था और मुझे उस रात बेचैनी की वजह से नींद भी नही आई एक ही बात जो मेरे मन को दुखी कर रही थी वो ये की purified पानी सीधा सिंक में गिर रहा था और उसका कोई उपयोग नही हो पा रहा था पानी की इस तरह की बर्बादी से मैं व्यथित था
और अभी भी घटते जलस्तर और बढ़ते जल प्रदूषण से मैं अत्यंत परेशान और चिंतित रहता हूँ ।जरा आप भी मेरे साथ अपनी यादों में 10 वर्ष पीछे जाइए तो आप पाएंगे कि अगर महानगरों को छोड़ दिया जाए तो हर छोटे शहरों और कस्बों में जगह जगह हैंडपम्प देखने को मिल जाते थे और 2 हैंडल चलाने पर शुद्ध निर्मल जल की मोटी धार हैंडपम्प से निर्झर तबतक गिरती रहती जब तक मन और तन तृप्त न हो जाता।
भरी दुपहरिया में पसीने से लथपथ जब क्रिकेट खेलकर हम किसी हैंडपम्प के पास रुकते तो पार्ले जी की मिठास और नल के जल की शीतलता हमारी सारी थकान दूर कर देती और पुनः हम ऊर्जायुक्त हो जाते थे पर अब यह देख हताशा और निराशा होती है कि मात्र 10 वर्षों में ही इतना अधिक जलसंकट गहराया है कि नलकूप हैंडपम्प तालाब पोखरी नहर सब धरती की धूल में विलीन से हो गए हैं हमारी प्यास को बुझाने वाले जलस्रोत स्वयं ही बुझ/सूख चुके हैं।
वो दिन याद आते हैं जब हम किसी हैंडपम्प के समक्ष खुद को प्रस्तुत कर देते थे और तबतक अघा अघा कर हाथ पैर धुला जाता था जब तक स्वयं का जी न भर जाए।और एक आज का हालात ये है कि आप चाट/ पकौड़े की दुकान से एकबारगी समोसा एक आध मुफ्त में अपने व्यवहार की धौंस में खा सकते हैं लेकिन कंठ की प्यास बुझाने के लिए आपको आजकल की प्रचलित जलदेवीयों जैसे बिसलेरी देवी और किनेली रानी के आगे ही हाथ फैलाना होगा।
मैं अक्सर यह ही सोच सोच कर परेशान हो उठता हूँ कि अगर गत 10 वर्षों में जल इतने संकट में आ गया है तो आगामी 10 वर्षों में क्या होगा????पहले हर कस्बे हर शहर में चाट पकौड़ी के दुकानों के इर्द गिर्द एक दो हैंडपम्प तो जरूर होते थे पर आज गांव में भी स्वच्छ जल देने वाले हैंडपम्प बड़े दुर्लभ हो गए हैं और गांव की कभी शान माने जाने वाले कुएं भी विलुप्तप्राय हैं और अगर कहीं मिल भी गए तो वे निष्प्रयोज्य हैं।हम खुद को और खुद के बच्चों को किस अंधकारमय भविष्य की गोद मे जानबूझकर झोंक रहे हैं यह विचारणीय है।
मेरी नन्ही सी बेटी की चमकती आंखों में जब खुद को देखता हूँ तो उसमें मुझे अपार खुशी अनहद आनंद और ज़िंदादिल ज़िंदगी दिखाई देती है जो कल को जी लेने के लिए बेसबर है पर अफसोस कि उसकी और उसकी पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे???जलविहीन जीवन और प्रदूषणयुक्त पर्यावरण???तब वे बच्चे जो कि हम सब से ज्यादा बौद्धिक और तार्किक होंगे हमारी ढिठाई और अज्ञानता पर प्रश्न उठाएंगे और उन्हें हमपर कभी गर्व नहीं बल्कि शर्म महसूस होगी कि प्रकृति के अकूत आगार को हम सहेज नही पाए।हम आज जो कर रहे जैसा कर रहे ठीक किन्तु हम आने वाले कल को अपना क्या देकर जा रहे???यह सोचनीय है???जीवन तो हम सबका भंगुर है जो एक न एक दिन नष्ट ही होना है पर हमारा विचार हमारा आचरण और हमारा संस्कार वह तो अमर रहेगा हमारी संतानों में,हमारी पीढ़ियों में…..

काश! हम ऐसा पर्यावरण दें अपनी पीढ़ी को की उनकी सांसो में हम निरन्तर महकतें रहें उनकी सांसो का शुद्ध ऑक्सीजन और खुली हवा में प्राणवात लेने का अधिकार हमारे स्वयं के हाथों में है
बहरहाल, अन्य विषयों पर चर्चा बाद में होगी अभी हम जल/पानी की समस्या की बात करते हैं।मैं भदोही जिले में रहता हूँ और यहां से मात्र 13 किमी दूर स्थित मिर्ज़ापुर के कुछ गांव जो पहले अत्यधिक जलश्रोत सम्पन्न थे वे अब सूखाग्रस्त हैं और पानी मे रसायनों के खतरनाक स्तर तक बढ़ने के कारण किसी जलश्रोत का पानी पीने के काबिल नही और गांवों में भी धड़ल्ले से RO पानी की सप्लाई लोकल वेंडर्स की वैन कर रहीं है और यह तो भारत जैसे देश के लिए अजूबा ही है कि गांव में रहने वाला व्यक्ति भी यदि बिसलेरी पर आश्रित हो जाए।आज कल तो मेरी आँखें गन्नाजूस के ठेले को गांवों में देखकर फ़टी रह जाती हैं पर यह दृश्य भी अब शनै शनै सामान्य होता जा रहा अन्यथा 10 वर्ष पूर्व तक तो हमारे यहां जब गन्ना पिराई होती तो लोगो को सूचित किया जाता कि जिसको मन हो आकर गन्ने का रस छककर पी ले यहां तक दिहाड़ी के मजदूरों को जलपान में भींगी मटर की घुघरी लाल मिर्च के साथ और गन्ने का रस और दही दिया जाता था पर अब यह अकल्पित है 40 रुपए किलो दही और 10 रुपए ग्लास का जूस…
समस्या धीरे धीरे विकराल और भयानक होती जा रही पर अभी भी हम कुम्भकर्णी नींद की आगोश में हैं।जल की समस्या के लिए मेरा ऐसा मानना है कि दोष नागरिकों का ही नही बल्कि निरीह सरकारों और निष्क्रिय तंत्रों का भी है।हम नागरिकों से प्रत्येक वस्तु पर हमारी सरकार टैक्स लेती है और बदले में हमको देती क्या है???कुछ भी नही यहां तक कि हम स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल के भी मोहताज़ हैं।घर घर मे RO लगाए जा रहे कस्बे कस्बे में बिना किसी मानक और प्रमाणिकता के RO प्लांट्स स्थापित किये जा रहे जिससे तेजी से जलस्तर नीचे जा रहा और उद्योगपतियों ने तो और हालत खराब की है प्रदूषित पानी के शोधन की जगह सस्ती और आसान रिवर्स बोरिंग करा दे रहे जिससे गन्दा पानी फिर जमीन में जा रहा और आर्सेनिक लेड की मात्रा को खतरनाक रूप से बढ़ाकर अमृतसम और जीवनदायी जल को प्राणघातक विष में तब्दील कर रहा।अभी सरकार चुप है हम खामोश !! जब जल संकट अत्यधिक गहराएगा और हाहाकार मचेगा तब सरकार हमको कर्तव्यबोध कराएगी और हम सरकार को कोसेंगे अभी मात्र advertisement से ही जल सरंक्षण किया जा रहा।मानता हूं प्रयास हो रहे पर और व्यापक प्रयास और नागरिक और सरकार की इस प्रयास में भागीदारी की जरूरत है।हमको और सरकार दोनों को प्रोएक्टिव बनना होगा अन्यथा 10-15 वर्षों में दक्षिण अफ्रीका जैसे हालात के लिए हमको भी तैयार रहना पड़ेगा।हम सबको जल सरंक्षण और जल बर्बादी को रोकने के लिए व्यक्तिगत रूप से व्यापक प्रयास करना ही होगा।
मैंने कहीं पढ़कर जाना है कि इजराइल जैसे देश मे ज्यादा बारिश नही होती किन्तु जल संसाधनों का बेहतरीन उपयोग और अत्याधुनिक जल प्रबंधन तकनीक की वजह से वहां जल संकट न के बराबर है पर यह बिना नागरिकों की चेतनता और सहयोग के नही संभव है।अब मैं कुछ आंखों देखा दृष्टांत प्रस्तुत करना चाहता हूं जो कहीं न कहीं जल बर्बादी के लिए जिम्मेदार है और ये उदाहरण आपको भी आस पास या खुद के घर मे मिल ही जाएंगे।

1-मेरी एक आंटीजी हैं जो सप्ताह में 3 दिन पानी से अपने घर का शुद्धिकरण करती है।
2-एक भैया को अपनी गाड़ी धोने का इतना शौक़ है कि महीने में 5 दिन निर्दयतापूर्वक पानी से अपनी गाड़ी चमकाते है
3-एक महाशय ने अपने जीवन मे एक भी पेड़ नही लगाया होगा लेकिन AC सस्ती होने पर अपने घर की शान AC से बढ़ा रहे जबकि कोई विशेष जरूरत नही है बस स्टेटस का दिखावा है
4-घरों में फ्लशयुक्त टॉयलेट बना होने के कारण 50 मिली पेशाब करने वाले बच्चे भी 15 लीटर पानी से अपनी मूत्र को बहाते हैं।
5-कुछ युवतियों और महिलाओं का ऐसा दैहिक सौंदर्य है कि उसे चमकाने के लिए कम से कम आधे घण्टे का अनवरत शावर जरूरी है चाहे पानी कितना भी बहता रहे और अगर इस महास्नान में यदा कदा टँकी का पानी खत्म हो जाए तो पति समेत सारा घर सर पर उठा लेंगी।
6-अधिकतर खेतों में पानी की सप्लाई कर किसान तब तक भूला रहता है जबतक कोई गांव का लफंडर लड़का उनको यह सूचित नही करता की उनकी मेड कट कर बही जा रही।
7-जीभ की स्वादकलिकाओं को परमानंद का सुख देने के प्रायोजन से अनेक लोग नित्यप्रति मांस का सेवन करते हैं उसकी सफाई में भी पानी की बर्बादी का कोई ख्याल नही रखा जाता है और विभिन्न मज़हबी त्यौहारों में तो टशन में ना जाने कितने बैरल पानी स्वाहा कर दिया जाता है ।
शेविंग ब्रशिंग डिशवाशिंग न जाने क्या क्या ;कारण गिनने बैठ जाएं तो ऐसे अनेको कारण मिलेंगे जो जल बर्बादी के लिए जिम्मेदार हैं और उसके लिए जवाबदेह हम।किन्तु न किसी की जवाबदेही तय है न किसी की जिम्मेदारी।
मेरा विनम्र अनुरोध है आप पानी के महत्व को समझें और सिर्फ advertisement या लेख से नही स्वतः!किसी दिन बस अपने यहां के पानी की मेन सप्लाई को बस 24 घण्टे के लिए ठप रखिए यकीन मानिए आप व्याकुल हो उठेंगे आपको कुछ सूझेगा नही और तब कल्पना करिएगा की अगर प्यास बुझाने को भी हमारे पास पानी नही होगा तो क्या होगा????
इस मामले में मैं सरकार को भी बहुत बड़ा दोषी मानता हूं इतनी बड़ी जनसंख्या से खरबों रुपये टैक्स लेने के बाद आप वास्तविक टैक्स पेयर को क्या लौटाते हो??उसकी बेसिक नीड स्वच्छ हवा और पानी ही तो है वो वह भी नही पा रहा है और किसी टैक्स पेयर को तो मुफ्त अनाज मुफ्त सेवा से ऐसे ही दरकिनार कर दिया जाता है बनिस्बत उसको इस बात के लिए भी दबाव दिया जाता है कि जिन सेवाओं में वो सरकार के रहमोकरम से थोड़ी मोडी सब्सिडी पा रहा वो भी देशहित में परित्याग कर दे।मैं सरकार से पूछता हूँ देश आपके हाथों में है जब आप अपने देशवासियों को स्वच्छ हवा स्वच्छ पानी नही दे पा रहे तो आपकी तमाम योजनाए और प्रयास निरर्थक ही हैं क्योंकि सुविधाओं का उपभोग करने हेतु जीवन का शेष रहना जरूरी है और जीवन के लिए निर्मल जल और शुद्ध वायु।
मैं अपने विचार से कुछ बिंदुओं को प्रस्तुत करना चाहता हूं जिससे जलसंकट को टाला जा सके।
1-हमारा देश एक सशक्त और सक्षम देश है हमारी सरकारों को अत्याधुनिक और उन्नत तकनीकों का भरपूर इस्तेमाल जल प्रबंधन और जल संचयन हेतु करना चाहिए।
2-जल के अपव्यय को रोकने और कम करने के लिए प्रत्येक नागरिक हेतु जल व्यय की सीमा का निर्धारण करना चाहिए और अपव्यय पर ठोस दंड का प्रावधान करना चाहिए।
3-उद्योगों द्वारा हो रही रिवर्स बोरिंग को तत्काल प्रभाव से रोक देना चाहिए और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट न होने पर कठोर कदम उठाने चाहिए।
4-जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए त्वरित कार्यवाही की जानी चाहिए।
5-AC के उपभोक्ताओं को परिसर में 5 पेड़ न होने की दशा में खरीदने पर रोक लगनी चाहिए।
6-RO PURIFIER प्लांटस को बंद कर सरकारी जल शोधन संयंत्र प्रत्येक शहरों में स्थापित होना चाहिए जिससे पानी की बर्बादी को रोका जा सके।
7-खेती किसानी के लिए पुराने प्रचलित तरीकों की जगह उन्नत तरीके की सिंचाई व्यवस्था का प्रबंधन होना चाहिए।
8-कोक पेप्सी जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के यत्र तत्र प्लांट स्थापित करने पर रोक लगनी चाहिए और इसी शर्त पर प्लांट लगाने की अनुमति देनी चाहिए यदि प्लांट के ही बराबर भू भाग का जंगल लगाना चाहिए और स्मार्ट वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट का प्रबंध होना चाहिए।
*मैं अपने प्रयास से जितना जल संरक्षण हेतु कर सकता हूँ वो करना प्रारंभ कर दिया हूं अपने दैनिक जीवन मे जल उपभोग को सीमित कर और अपनी लेखनी से छोटी सार्थक पहल कर।आपका हमारा एक छोटा प्रयास ही विशाल परिवर्तन का महाआरम्भ हो सकता है।आईए स्वयं से शुरुवात करें एक सार्थक प्रयास करें।*

नाम-जगदीश चंद्र श्रीवास्तव

साहित्यिक उपनाम- फिलहाल नही है

वर्तमान पता-डॉ0 कालोनी पश्चिम मोहाल गोपीगंज भदोही(संत रविदास नगर)उ0 प्र 0

राज्य-उत्तर प्रदेश

शहर-भदोही

शिक्षा- स्नातक (कम्प्यूटर अभियांत्रिकी)

कार्यक्षेत्र-शिक्षक

विधा -कविता व कहानी लेखन

प्रकाशन-उपलब्ध नहीं

सम्मान-फिलहाल नही

ब्लॉग-नही

अन्य उपलब्धियाँ-नही

लेखन का उद्देश्य-पाठकों को साहित्य की सार्थक प्रस्तुति व मनोरंजन हेतु

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।