ये कच्ची माटी की काया,
माया कोई जान न पाया।
क्यों होता है कब होता है,
अब होता है तब होता है।
जो होता है जब होता है,
कुदरत का करतब होता है।
ईश्वर अल्लाह’ रब होता है,
भगवन मौला सब होता है।
मानव तो मानव होता है,
डम डम डम तांडव होता है।
कभी पुरातन-नव होता है,
गौण कभी गौरव होता है।
ऊँची मंजिल गहरा पाया,
माया कोई जान न पाया।
मीठा-सा कलरव होता है,
साँसों में सौरव होता है।
क्रोध कभी आरव होता है,
रावण में राघव होता है।
धन दौलत वैभव होता है,
कभी सुदामा भव होता है।
जब कोई कौरव होता है,
कान्हा का उद्धव होता है।
जीवन इक उत्सव होता है,
पर शिव बिन ये शव होता है।
धूप और छाया का साया,
माया कोई जान न पाया।
#छत्रपाल
परिचय : छत्रपाल शिवाजी भोलेनाथ के अनन्य भक्त कवि हैं। आप सागवाडा के जिला डूँगरपुर (राजस्थान) में रहते हैं।