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अंगारों सी तपती सड़कों पर, जब डंपर दौड़ लगाते हैं,
मानों जैसे सौदागर जानों पर, मौत की होड़ लगाते हैं,
देती नगद हवाला मृत्यु चलते फिरते जीवन का
मोलभाव फिर कहां से होगा रफ्तार में छिनते जीवन का
एक काम करो ऐ सौदागर, कुछ सड़क किनारे गुमटी खोलो
कुछ साज सजी अर्थी रख लो, और रंग सफेद कपड़ा रख लो
जैसे उड़े देखो प्राण जीव के वैसे ही अर्थी लेकर दौड़ो….
पहचान भी कर लो फिर लाशों से पाँकिट से निकले नांतो से
और अपनी वस्तु को विक्रय करके फिर नाता जोड़ों सड़कों से
विश्वास करो ये धंधा भी उस डंपर दौड़ के साथ चले
सौदा इतना चोखा है कि कीमत इसकी नगद पटे
बस याद रखो इन बातों को कि दुर्घटना तुमसे दूर घटे
और अपने डंपर की रफ्तारें बस अपने नोटों का नाम रटे
फिर एक दिन ऐसा आएगा तुम राजतंत्र का हिस्सा होगे
ॖदेखोगे वो दिन भी जब गुमटी पे चैले तुम्हारे बैठेंगे
ना कोई चिंता सड़कों की होगी ना गुमटी की झंझट होगी
बस खादी की गर्माहट होगी और पैसों की खनखन होगी
जीवन का हिस्सा ऐसा होगा जैसे अमृत का प्याला
फर्क नहीं उस प्याले ने कितने बच्चों का छीना निवाला
होगा हिसाब बस एक हाथ में कितने डंपर कितनी गुमटी
क्या लेना देना रफ्तार में इनके कितनी बेगुनाह जानें सिमटी
मैं रजनीश तो चेत चुका इस अंधी दौड़ की महिमा से
जब नींद खुली थी अस्पताल में दो दिन के उस कौमा से
#रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l
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