नेता व साधु के बीच यदि कही मैत्री भाव की अनुभूति हो तो समझ ले कि दोनों के बीच “विवेक पूर्ण ” समझौता है! इसी विवेक का इस्तेमाल हम अपने लिए करे अपने अंतर की चेतना से करे तो दोनों में भारी विभेद दृष्टिगोचर होता है क्योंकि दोनों के लक्ष्य और स्वभाव में भिन्नता है और मंजिल तक के रास्ते भी विपरीत है दोनों की प्रवृत्ति में अंतर है संत कोई नेता नही है कि भीड़ को जो अच्छा लगे वह बोले ! इस बात का हमें ख्याल कर लेना चाहिए कि वह जैसा है वैसा ही बोलता है किसी को अच्छा लगे , नही लगे उससे साधु का कोई वास्ता नही है ! पर नेता ठीक इसके विपरीत होता है नेता भीड़ का नेतृत्व चाहता है ! अतः वह यह पहले निश्चित कर लेगा ,देख लेगा कि भीड़ या अनुयायी क्या चाहते है ? अगर भीड़ चाहे कि समाज वाद लाओ , लोक पाल लाओ , राष्ट्र वाद लाओ तो नेता उस भीड़ के आगे खड़ा हो जाता हैं और पूरी ताकत से चिल्लाने लगता है कि मै यह लाकर दिखाऊँगा ! भोंपू की आवाज बड़ी तेज और बुलंद होकर वायुमंडल में तैरने लगती है ! असली शातिर समूह या झुण्ड अपने मकसद में कामयाब होने के लिए भीड़ का इस्तेमाल कुशलतापूर्वक करने लगते है और नेता को उस भीड़ के आगे खड़ा कर दिया जाता है भीड़ का संबल पाकर नेता फिर पीछे लौट कर नही देखता ! उसका विवेक और शौर्य भीड़ की ऊर्जा से मिलता रहता है !
ताज्जुब की बात यह भी है कि भीड़ अंध भक्ति में संत के प्रति समर्पित देखी गई है संत भी पारलौकिक वैभव की यात्रा लौकिक वैभव रूपी नाव से पूरी करना चाहता है ऐसी दशा को आज के नेता की विवेकी दृष्टि ने पहचान लिया है , इसलिए दोनों की विभिन्नता के उपरांत भी वैभव रूपी मंजिल तक पहुँचने के लिए दोनों मे अदृश्य प्रेमिल लहरे अद्वैत विचार धारा की एक रसता को लेकर बहती है ! दोनों के मध्य एक मौन समझोता हो चुका है !
भीड पर आरूढ़ आज नेता और संत दोनों हो चुके है विवेक का गला घोंटा जा रहा है ! जब भी विवेक ने नेता से कुछ कहना चाहा कि नेता जी आप देश को कहाँ ले जा रहे हो ? नेताजी हमेशा निर्लिप्त भाव से कहते है यह हमसे मत पूछो इस देश के ऋषियों से पूछो ! तपस्वियों से पूछो ! हिन्दुस्तान की मिट्टी से पूछो ! संस्कृति की जड़ों से पूछो ! नेता जी के जवाब से विवेक छटपटाहट में अधमरा हो चुका है …!!
#छगन लाल गर्ग विज्ञपरिचय-छगन लाल गर्ग “विज्ञ”!जन्मतिथि :13 अप्रैल 1954जन्म स्थान :गांव -जीरावल तहसील – रेवदर जिला – सिरोही (राजस्थान )पिता : श्री विष्णु राम जीशिक्षा : स्नातकोतर (हिन्दी साहित्य )राजकीय सेवा : नियुक्ति तिथि 21/9/1978 (प्रधानाचार्य, माध्यमिक शिक्षा विभाग, राजस्थान )30 अप्रैल 2014 को राजकीय सेवा से निवृत्त ।प्रकाशित पुस्तके : “क्षण बोध ” काव्य संग्रह गाथा पब्लिकेशन, लखनऊ ( उ,प्र)“मदांध मन” काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ,प्र)“रंजन रस” काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ,प्र)“अंतिम पृष्ठ” काव्य संग्रह, अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद (उ,प्र)“तथाता” छंद काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ.प्र.)“विज्ञ विनोद ” कुंडलियाँ संग्रह , उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ (उ.प्र. ) ।“विज्ञ छंद साधना” काव्य संग्रह, उत्कर्ष प्रकाशन!साझा काव्य संग्रह – लगभग २५सम्मान : विद्या वाचस्पति डाक्टरेट मानद उपाधि, साहित्य संगम संस्थान नईं दिल्ली द्वारा! विभिन्न साहित्यिक मंचो से लगभग सौ से डेढ सो के आस-पास!वर्तमान मे: बाल स्वास्थ्य एवं निर्धन दलित बालिका शिक्षा मे सक्रिय सेवा कार्य ।अनेकानेक साहित्य पत्र पत्रिकाओ व समाचार पत्रों में कविता व आलेख प्रकाशित।वर्तमान पता : सिरोही (राजस्थान )