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हमको किसी से कोई शिकायत नहीं रही,
हमको अब उसकी जरूरत नहीं रही।
हथियार हमारे रहे मुस्तैद हमेशा,
ये और बात है कि अदावत नहीं रही।
पहले की तरह लोग यहां मिलते ही नहीं,
और आज यहाँ यारों तिजारत नहीं रही।
हमने तो खा लिए यहां धोखे मोहब्बत में भी,
पहले की जैसी आज हकूमत नहीं रही।
लूट करके वह सभी बर्बाद कर गए,
पर आज हमको उनकी भी चाहत नहीं रही।
‘राज’ दिल का सुनाऊं किसे मैं अब यहां पर,
जबकि हक में मेरे तो अदालत नहीं रही॥
#कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’
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बहोत सुंदर सृजन है बधाईयाँ
Bahut accha sir
बहुत सुन्दर गजल। हार्दिक बधाई महोदय।