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ऐ खुदा हर दर्द को तू क्यों,दिल का पता देता मेरा,
भूल क्यों जाता तू अक्सर में भी इक इंसान हूँ।
शक सदा सोने पे जाता,कोयला कोई देखे नहीं,
आग में क्यों झोंका मुझको,मैं तेरी पहचान हूँ।
सह लिए जुल्मो-सितम,देने थे जितने दे दिए,
आ जाओ तुम मेरे मुक़ाबिल,मैं खड़ी चट्टान हूँ।
आजमाइशों के दौर में,अपने पराए हैं सभी,
क्यों न रखता मान मेरा,मैं तेरा अभिमान हूँ।
मंदिरों के कीर्तन और मस्जिदों की अजान में,
वाहे गुरु की वाणी में,मैं तेरा ही वरदान हूँ॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
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