कुछ तुलसी कुछ सूर से,
कुछ ले दास कबीर।
बांच रहे हैं मन्च पर,
होकर परम् अधीर।
बन गए कवि सैलानी।
जनता जाये भाड़ में,
लें बटोर ये नोट।
पांच साल के बाद फिर,
कौन किसे दे वोट?
गरीबी मिटा रहे हैं।
पत्रकारिता के लिए,
पैदा हुए कलंक।
जन सेवा के कार्य को,
बेंच रहे निःशंक।
कहो तो खबर छाप दूं।
रपट लिखाने जब गए,
थाने में श्रीमान।
मुंशी ने देकर कहा,
गांधी चित्र प्रमाण।
पाँच से कम न लेंगे ।
अर्जी लेकर हाथ में,
कड़के थानेदार।
नगदनारायण के बिना,
सब कुछ है बेकार।
लग रहा तुम्हीं चोर हो।
#वैकुन्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’
परिचय : वैकुन्ठ नाथ गुप्त ‘अरविन्द’ टेलियागढ़ (जिला-फैजाबाद(उप्र) में रहते हैं।आप काफी समय से काव्य रचना में लीन हैं।
Nice
सुन्दर रचना।