समय-समय का फेर है,समय बड़ा बलवान,
समय समझ करते रहो,दान मान सम्मान ;
यही है बात पते की।
समझ चूकी पछताय नर,समय बड़ा बलवान,
समय साथ जो जन चले,खिले होंठ मुस्कान..
सुधर जा अब तो प्राणी।
समय भूली छल-बल करे,करे अशुभ जो काम,
ऐसे ही नर कर रहे,मानवता बदनाम ;
रखो पहचान जरा-सी।
राजनीति पंकित हुई,सब-कुछ रहा बनाव,
स्वारथ हावी हैं यहाँ,पग-पग मिलते घाव;
सुधारो ढर्रा भैया।
बने भूप भी रंक है,रंक बने हैं भूप,
समय पलटता ही रहे,कभी छाँव तो धूप;
समय कीमत पहचानो।
समय विकट आया यहाँ,बाढ़ खेत को खाय,
रक्षक ही भक्षक बने,अब है कौन सहाय;
रोक लो यहीं हवा को।
देखो श्रम भूला मनुज,आज मशीनी लोग,
कल को औषधि जो रहा,आज समय वह रोग ;
नष्ट ही होगा यूँ सब।
लालच चढ़ा बुखार मन,कैसे उतरे आज,
एक शेष दिखता नहीं,रोग न जिसे समाज ;
कहो क्या होगा आगे।
संगम करता है सदा,समय जाँच- पड़ताल,
कभी डाँट-फटकार तो,करता कभी निहाल ;
सदा हो जय संगम की।
#भगत ‘सहिष्णु’
परिचय : भगत टेलर ‘सहिष्णु’ प्रतापनगर (राजस्थान)में रहते हैं और प्रतियोगी शिक्षण कथा प्रवचन का व्यवसाय करते हैं। आप हर प्रकार के लेखन में सक्रिय हैं।