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जैसे सुख को काटा तूने,
दुःख भी तू हीं काटेगा।
औरों की तरह ही ईश्वर,
तेरी भी खुशियां बाँटेगा॥
तेरे सब्र की परख भी होगी,
पाँव तेरा दुःख चाटेगा।
और समय का मरहम लेकर,
ज़ख्म तेरा सब पाटेगा॥
आज नहीं तो कल या परसों,
या फिर नरसों-बरसों बाद।
तेरे सुख-सौभाग्य के लिए,
दे जाएगा आशीर्वाद॥
जब तक है दुख तब तक तू,
हिम्मत अगर न हारेगा।
अपना खोया हुआ सब कुछ,
एक दिन वापस पाएगा॥
सामर्थवान सूरज को कभी,
घेर लेती घनघोर बदरिया।
मदारी मौसम नचवाता,
नट पर बन्दर और बंदरिया॥
सुख सूरज को दुख की छाया,
वश में क्या कभी कर पाएगा ?
आज नहीं तो निश्चित ही कल,
सूरज धरा पर आएगा॥
दुःख भी एक वरदान ‘भवन’,
दुःख में ही ईश्वर हैं मिलते।
काँटों में देखा है सुन्दर,
फूलों में गुलाब को खिलते॥
निर्जन वन में इक-इक पौधा,
जैसे गुलशन बन जाएगा।
दुःख का पर्वत भी वैसे ही,
एक दिन बुकनी बन जाएगा॥
#रामभवन प्रसाद चौरसिया
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।
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