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न सोना न चांदी,न हीरे जवाहारात,
मां के आगे किसी की क्या बिसात।
जिगर में छुपाए शबनमी माहताब,
शाख़ों को देती मंजिलें आफताब।
देखा है मां को पल-पल बड़ा होते,
बचपन से अपने दायित्व निभाते।
आज बिस्तर पे लेटे-लेटे ताक रही,
जिंदगी का फ़लसफ़ा सिखा रही।
आंखों से शबनम गुमशुदा है अभी,
बोलीं’ जाने वाले पे रोते नहीं कभी।
मां मेरा जहां है, इतना मूझे मालूम,
ओरों के ज़ज्बात क्यों हो मालूम।
उसके पथरीले जीवन से धागे चुन,
हंसी ख्वाब की ताबीर ली है बुन॥
#डॉ.चंद्रा सायता
परिचय: मध्यप्रदेश के जिला इंदौर से ही डॉ.चंद्रा सायता का रिश्ता है। करीब ७० वर्षीय डॉ.सायता का जन्मस्थान-सख्खर(वर्तमान पाकिस्तान) है। तत्कालिक राज्य सिंध की चंद्रा जी की शिक्षा एम.ए.(समाजशास्त्र,हिन्दी साहित्य,अंग्रेजी साहित्य) और पी-एचडी. सहित एलएलबी भी है। आप केन्द्र सरकार में अधिकारी रहकर
जुलाई २००७ में सेवानिवृत्त हुई हैं। वर्तमान में अपना व्यक्तिगत कार्य है। लेखन से आपका गहरा जुड़ाव है और कविता,लघुकथा,व्यंग्य, आलेख आदि लिखती हैं। हिन्दी में ३ काव्य संग्रह, सिंधी में ३,हिन्दी में २ लघुकथा संग्रह का प्रकाशन एवं १ का सिंधी अनुवाद भी आपके नाम है। ऐसे ही संकलन ७ हैं। सम्मान के तौर पर भारतीय अनुवाद परिषद से, पी-एचडी. शोध पर तथा कई साहित्यिक संस्थाओं से भी पुरस्कृत हुई हैं। २०१७ में मुरादाबाद (उ.प्र.) से स्मृति सम्मान भी प्राप्त किया है। अन्य उपलब्धि में नृत्य कत्थक (स्नातक), संगीत(३ वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण),सेवा में रहते हुए अपने कार्य के अतिरिक्त प्रचार-प्रसार कार्य तथा महिला शोषण प्रतिरोधक समिति की प्रमुख भी वर्षों तक रही हैं। अब तक करीब ३ हजार सभा का संचालन करने के लिए प्रशस्ति -पत्र तथा सम्मान पा चुकी हैं। लेखन कार्य का उद्देश्य मूलतः खुद को लेखन का बुखार होना है।
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