आप हैं श्री लच्छू उस्ताद…

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shankar lal
आपसे मिलिए,आप हैं श्री लच्छू उस्ताद…जाति से ब्राम्हण, बरसों से चुंगी नाके की नाकेदारी करते-करते सभी को निकट से पहचान लिया है इन्होंने। चेहरा अब भी रोबीला,मूंछों पर वही ऐंठन और ठसक ऐसी कि,क्या कोई थानेदार रखेगा ? जबान पर लगाम है,मन पर काबू हैl दसवीं किताब उस समय की उत्तीर्ण है,जब अंग्रेजी का तार पढ़ने वाले अंगुलियों पर गिन लिए जाते थे।
अगर आप इनसे प्रातः मिलना चाहें तो ५ बजे तक पहुंच जाइए,अन्यथा दिनभर दर्शन दुर्लभ-रात में बड़ी देर से आते हैं और सुबह जल्दी ही चले जाते हैं अपने काम पर। लच्छू उस्ताद को आप कुछ भी कह लीजिए-लच्छू दादा,लच्छो जी,लच्छू भैया, लछमन…कभी नाराज नहीं होंगे,पर हां,लच्छू उस्ताद को `लच्छू महाराज` जो कह दिया तो दादा हंसते हुए आँखें गड़ाकर आपसे कहेंगें-`जाओ बेटा कुछ काम करो`।
दखल हर बात में आप रखते हैं,वेद पुराणों से लेकर तोता- मैना के किस्से तक आप पूछ लेंl इस शैली से आप कहेंगे कि,आप वहां से उठने का नाम तक नहीं लेंगे। जबसे सर्वशिक्षा का काम चला है ये जाएंगे आंगनवाड़ी-इन बच्चों को गीतों से,खेलों से, अभिनय से पाठ पढ़ाकर ही लौटेंगे और पढ़ाने वालों को भी नए-नए पढ़ाने के गुर बता डालेंगे। शाला में बच्चों का भोजन चखेंगे,चारदीवारी के सहारे पौधे लगाने की सलाह देंगे,प्रार्थना में किसी महापुरुष की घटना का उल्लेख कर देंगे और सबसे अच्छी बात तो यह कि,शाला में कमरों की खिड़कियां न हो,रसोइघर में असुविधा हो,पानी की टंकी पर ढक्कन न हो,दरवाजा टूटा हो,खेल का मैदान न हो तो अपनी लाल डायरी में लिखेंगे और पहुँच जाएंगे शिक्षा अधिकारी के चेम्बर में सब कुछ बताने और तत्काल कार्य पूरा कराने के लिए। विकलांगों के प्रति लच्छू दादा बड़े मेहरबान हैं,उनके लिए चिकित्सक से विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने, रोडवेज का पास बनाने,सम्बन्धित विद्यालय में प्रवेश दिलाने और उनकी विकलांगता को दूर करने के लिए सम्बन्धित चिकित्सक व अस्पताल का अता-पता भी बता देंगे। गरीबी रेखा के नीचे होने पर सरकारी सुविधाओं की जानकारी तो देंगे ही, आवश्यक हुआ तो सम्बन्धित कार्यालय तक भी पहुॅंचकर कार्य पूरा कराने में मदद देकर ही दम लेंगे।
आदमी काम के हैं,पुलिस थाने में काम हो तो दरोगा से लेकर के हेड साहब तक ये बात कर लेंगे। गरीब को वकील से मिलाकर सस्ते में काम करवाना तथा अकाल राहत,विधवा पेंशन, गरीब का घर बनवाने और चिकित्सा शिविर का आयोजन तथा गैस वितरण में लोगों की कतार न बनी हो,तो दादा इस काम को भी पूरा करेंगे।
यात्रा में आपका साथ सभी चाहते हैं। टिकट की खिड़की पर रोब के साथ खड़े हो कतार तोड़ने वालों को कतार में लगा दें, महिलाओं की पंक्ति में खड़े होने वाले पुरुषों को हाथ पकड़कर नागरिकता का पाठ पढ़ा दें और रेल के डिब्बे में फैलकर बैठने वालो को बांह चढ़ा,मूंछों पर ताव लगाते जब ये कहेंगे-`कहो मियां,  सभ्यता से बैठना नहीं जानते हो क्या ? सीखकर आओ`। यात्रा लम्बी हो तो क्या कहना। अपनी ही अपनी कहते जाएंगे, आप बोल पड़े बीच में तो सुनना पड़ेगा-`बेवकूफ हो तुम नहीं समझते,कहीं ऐसा भी होता हैं। चुप रहो और सुनो……..। ‘तो फिर मैंने उसे ऐसी धमकी दी कि,बेटे को छटी का दूध याद आ गया’ और तभी से उसकी दोनों लड़कियां व बड़ा लड़का गांव की पाठशाला में जाने लगा।
इधर आइए,यहां वह मेला लगा है-देखिए वे जो दूर लम्बे बांस पर फूले हुए गुब्बारे,ककड़ी,पपीता,लौकी और लम्बी फलियों की शक्ल में बांध रखे हैं,लच्छू भैया ही है। गले में मोटी टाट का बड़ा थैला लटकाए और दूसरे कन्धे पर कुछ बांस की बांसुरिया जमाए मुंह से एक धुन बांसुरी बजाते और गुब्बारा फुलाने में व्यस्त हो गए हैं।
जब से यह `मनरेगा` का काम चला है,तबसे ही यह छोटे साहब के चालक से मिलकर `मेटबाबू` बन गए। हाजिरी भरना,गाड़ियों की गिनती करना,समय-असमय ठेकेदार से बात करना,यही कुछ कार्य इन्हें करने हैं। आदमी दिल और दिमाग का साफ है,फिर भला छोटे साहब के कहने से वह सौ के स्थान पर सवा सौ मजदूरों की संख्या क्यों लिखेगा। मन नहीं मानता। अपनी बात पर अड़ गए। अब इन दिनों इनकी नौकरी जाती रही। बात यह थी कि, ठेकेदार साहब ने छोटे साहब को और छोटे साहब ने बड़े साहब को शिकायत कर दी-`नया मेट लाइन पर नहीं है`,बस इसी बात पर लच्छू जी की छुट्टी हो गई।
अब क्या था ? लाल पगड़ी,कुर्ते का लाइसेन्स प्राप्त कर लिया इन्होंने। दिन की दोनों और रात की फोर डाउन पर जाते हैं और बाबूजी कुली,सेठजी मजदूर साहब ! आदमी चाहिए। इतने लहजे से कहेंगे कि,साहब उसे बोझा उठाने का संकेत दिए बिना नहीं रह सकेंगे। बेचारा लच्छू बच्चों से बड़ा परेशान है,आप ही बताइए ? ५ लड़के और ३ लड़कियों के साथ विधवा बहन का खर्च अकेला प्राणी कैसे उठाएl यह तो आदमी भला और हाथ का सच्चा हैं,नहीं तो कोई नही पूछे,पर बदकिस्मती देखिए कि सच्चे आदमी को झूठे साहब ने किस बेरहमी से हटा दिया,केवल इतनी-सी बात पर कि,सौ मजदूरों के स्थान पर सवा सौ की संख्या नहीं बताई।
दिल का साफ,गांठ की अक्ल रखने वाला और बात का धनी लच्छू जब बाजार में निकलता है,तो आपकी कसम पगड़ी वाले और काली टोपी वाले जौहरी और दलाल,व्यापारी तथा हम्माल सभी इसे प्रेमभरी नेक नजरों से देखते हैं। यूं आदमी हिम्मतवाला भी है और दिलवाला भी। उस दिन ही फोर डाउन से मुसाफिर का सामान छोड़कर आया ही था कि,पड़ोसी भीखू अहीर का छोटा छोकरा आया और बोला-`चाचा,बूढ़ी बीमार है। सफाखाने वाले डॉक्टर साहब ने सुई लगवाने को कही है। सुई के लिए पैसा नहीं है।` सो दादा बोले-सामने की दुकान से मेरा नाम लेकर ५ का नोट लेइ आउ। शाम तक लौटाय देंगे`।
आप सच मानिए,५ तो उसे दिए ही और बड़े छोकरे की रुपा बहू से १० लेकर अपनी अण्टी में दबाए सीधा सफाखाने पहुॅचा। है न, आदमी काम का ?,तभी तो लोग कहते हैं-`उस्ताद तो गांव में एक ही इन्सान है,इन्सान क्या देवता है। रामू का छोरा बांध में डूबने लगा तो,आव देखा न ताव,कूद पड़ा और छोकरे को बचा लिया। उस दिन मुसाफिरों की भरी बस को भी नदी के भॅंवर से इन्होंने ही बचाया था,नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो जाता।`
इन दिनों उस्ताद की नगरी में चोरों का आतंक छाया हुआ है। कभी ५ तो कभी ७ ताले रोज टूटते हैं। आप मानें या न मानें, इसी महीने में ३ बार लालाजी के यहां चोरियां हुई। जब लच्छू भैया को मालूम हुआ तो,कान तक लम्बी लोहे के तारों से सजी लठिया लेकर चौराहे के पास वाले पंचायत के पुराने दफ्तर में आकर पतली फ्रेम वाले सरपंच हरदयाल को ग्रामसभा करके चोरों के इन्तजाम के निर्णय की बात कह आएl उसी रात से गली-मोहल्लों में-`चौकीदार,खबरदार,जागते रहो’ की ऊंची आवाज सुनाई देने लगी।
कौन जानता था कि,नीचे के तबके वाला गरीब घर का जिसकी बाहर के बड़ों से जान-पहचान नहीं,ग्रामसभा में सभापति बनाया जाएगा लच्छू उस्ताद को। उसी दिन ग्रामसभा में लच्छू सभापति बोले-`भाइयों,देश में लोगन को आगे बढ़ाने के काज सरकार बहुत पइसा लगा रही है,बहुत ऊॅंची-ऊँची योजना बनावे हैं, पर भगवान इन दिनन हमते रुठ गयो है। कहुं-कहुं तो घोर बरसा हुये और कहुं-कहुं बिल्कुल नाही। याते खेती खराब हो गई हैं, मॅंहगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है,जिस कारण लोग चोरी करबे लग गए हैं,इसलिए हम सबन को बहुत मेहनत करनी चाहिए और बेइमानी,भ्रष्टाचार से दूर रहने को जतन करनो चाहिए। और इन सबन के लिए रोजगार शिक्षा जरुरी है।` तभी से घर-घर जाकर साक्षरता का अलख जगाने लगे।
वे युवकों को समझाते हैं कि मेरी तरह जो बच्चों की फौज तैयार कर ली तो दुब्बे जी रहना पड़ेगा। कम सन्तान रखो और जीवन सुखी बनाओ। अपने मित्रों से घर-गृहस्थी की बात जब करेंगे तो कभी-कभी यह कह देते हैं कि-`यारों ? और सब करना पर इन छोकरियों को सकरी मोरी का पाजामा और तंग कुरता कभी मत पहनाना।` और आपसे क्या अर्ज करुॅं उस्ताद के बारे में, उस्ताद का एक-एक काम बड़ा प्यारा लगता है। सड़क पर कोई पत्थर न रह जाए,गलियों में कचरा क्यों पड़ा है,बाजार की बिजलियां दिन में ही क्यों जल रहीं है,नल का पानी व्यर्थ क्यों बह रहा है,नाले के पुल का सीमेन्ट क्यों टूट गया,शाला का छोकरा बीड़ी क्यों पी रहा हैं और दीवारों पर गन्दे शब्द क्यों लिखता है,गांव में अतिक्रमण क्यों बढ़ता जा रहा है,पर्यावरण क्यों गन्दा होता जा रहा है,लोग प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े का थैला क्यों नहीं लाते…? सारी चिन्ताएं एकसाथ लिए ये हिन्दुस्तानी कहता है-`दोस्तों ! ऐसे देश का विकास होगा कि विनाश,बोलो।`
आज दादा को काम नहीं मिला,इधर-उधर घूम रहे थे तो डॉ. राजेन्द्र बाबू से मुलाकात हो गई। लच्छू जी का पुराना पड़ोसी है। देखकर बड़े ही खुश हुए और पूछा-`राजू आजकल क्या कर रहे हो ? बड़े लजीले स्वर में राजू बोला-`तीन साल डॉक्टरी पास किए हो गया दादा,अभी तक बेकार हूँ। काम दिलाउ दफ्तर में नाम लिखाया है,शायद नौकरी मिल जाए`। लच्छू जोर से ठहाका मारकर हंस पड़ाl कहा-`डॉक्टर साहब ! याद रखो,अपनी सफलता के इंजीनियर आप खुद हैं। अगर हम अपनी आत्मा की ईंट और जीवन का सीमेन्ट उस जगह लगाएं,जहां चाहते हैं तो सफलता की मजबूत इमारत खड़ी कर सकते हैं। ध्यान रहे,सफलता का एक दरवाजा बन्द होता है तो दूसरा खुल जाता है,लेकिन अकसर हम बन्द दरवाजे की ओर ही देखते हैं। और उस दरवाजे को देखते ही नहीं,जो हमारे लिए खुला रहता है। डालो थैले में गोलियां दवाई की और चलो मेरे साथ,गांव में बहुत मरीज मिलेंगे। कोई डेंगू बुखार से तो कोई स्वाइन फ्लू तो कोई डाइबिटीज से। सेवा और मेवा साथ-साथl क्यों,आई बात पसंद और हाँ,कभी किसी जरुरतमन्द को खून की आवश्यकता हो जो मेरे पास आ जाना। खून दूँगा भी और दिलाऊंगा भी।`
एक दिन लच्छू जी को जिले के सबसे बड़े साहब ने अपने बंगले पर बुलाया। पूछा साहब ने-`आप ही लच्छू दादा हैं न ? क्या काम करते हो` ? दादा बोले-पहले तो `मनरेगा` में सड़क पर मिट्टी डलवाता था,ठेकेदार जी छोटे साहब के आदमी हैं,उनकी बात नहीं मानी तो छुट्टी कर दी। अब रात की रेल पर जाकर कुलीगिरी करता हूँ और दिन में लोगों के फ्रीज,कूलर,पँखे ठीक करता हूँ। घर आते-जाते गाँव की गोशाला और पेड़ों पर बैठे परिंदों को भी देख लेता हूँ। रात में कभी-कभी पड़ोस के वृद्धाश्रम में जाकर बड़े-बुजुर्गों से बतिया लेता हूँ तो बड़ा अच्छा लगता है साहब`।
हाँ,एक जरुरी बात बताना तो भूल ही गया। इन दिनों लच्छू दादा सारे काम छोड़कर ‘नेकी की दीवार` को सम्भालने लगे हैं। लोगों के पास रखी बिना जरुरत की सामग्री को घर-घर से लाते हैं और जरुतरमन्द लोगों को उपलब्ध कराते हैं। इससे गरीब घर के लोगों को राहत मिलती है। दवाइयाँ,कपड़े,जूते,पुस्तकें-कॉपियों,खिलौने जिसे जैसी जरुरत होती हैं उन्हें मिल जाते हैं। हैं न पुण्य का काम। आप भी नेकी की दीवार के लिए कुछ तो कीजिए। लच्छू उस्ताद मिलेंगे आपसे ध्यान रखना।
आज सेठ रामलाल जी के यहाँ विशाल भोज का आयोजन था। लच्छू दादा भी आमन्त्रित थे,भोजनोपरान्त भारी मात्रा में झूठन देखकर दादा क्रोधित हो गए। साहूकार को कहने लगे-` जितना भी भोजन बचा हुआ है मुझे दें। मैं झुग्गी-झोपड़ियों में बसे लोगों को खिलाऊंगा`। जेठ की दुपहरी में मण्डी से लौटते समय अगर आप सुस्ताना चाहें तो लच्छू जी के दौलतखाने का बाहर का बरामदा तैयार है,जहां ठण्डे पानी की मटकी,खजूर की पंखी और चटाईयां आपको मिलेगी,थोड़ी देर आराम कर लीजिए,अगर आप रास्ता भटक गए हों,तो वे साथ हो जाएंगें और सही रास्ता बताकर ही लौटेंगें।
मौत-मरकत,जात-बिरादी,भीड़-भाड़,जान-बरात,गली- बाजार,सड़क-चौराहा,जहां भी लच्छू दादा मिलेंगें,सिर पर पीली धारीवाला चौकड़ीदार गमछा बाधें मिलेगें।
अब लच्छू भैया के गांव में न चोरी होती है,न डकैती। सभी लड़के-लड़कियां स्कूल जाते हैं। सभी लोग छोटे परिवार का सुख समझ गए। लड़के-लड़कियों में भेदभाव नहीं करते,भ्रूण हत्याओें का तो नाम भी नहीं हैं,सभी काम पर जाते हैं,और रोटी कमाते हैं। सहकार भावना से एक-दूसरे की मदद करते हैं। अब तो महिलाओं के भी स्वयं सहायता समूह बन गए हैंl इससे बैंक द्वारा समूह को ऋण मिल जाता है और गृह उद्योग के सहारे महिलाएं पैसा कमाने लगी हैं। देश-प्रदेश की कई योजनाओं से उस्ताद का गांव स्वर्ग बन गया है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी लच्छू उस्ताद को शत-शत नमन।
वास्तव में लच्छू दादा आदमी नहीं,फ़रिश्ता हैं।

#शंकरलाल माहेश्वरी
परिचय : शंकरलाल माहेश्वरी की जन्मतिथि-१८ मार्च १९३६ 
तथा जन्मस्थान-ग्रामआगूचा जिला भीलवाड़ा(राजस्थान)
हैl आप अभी आगूचा में ही रहते हैंl शिक्षा-एम.ए,बी.एड. सहित साहित्य रत्न हैl आप जिला शिक्षा अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे हैंl आपका कार्यक्षेत्र-लेखन,शिक्षा सेवा और समाजसेवा हैl आपकी लेखन विधा-आलेख,कहानी, कविता,संस्मरण,लघुकथा,संवाद,रम्य रचना आदि है।
प्रकाशन में आपके खाते में-यादों के झरोखे से,एकांकी-सुषमा (सम्पादन)सहित लगभग 75 पत्रिकाओं में रचनाएं हैंl 
सम्मान में आपको जिला यूनेस्को फेडरेशन द्वारा हिन्दी सौरभ सम्मान,राजस्थान द्वारा ‘साहित्य भूषण’ की उपाधि और विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ से `विद्या वाचस्पति` की उपाधि मिलना भी हैl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl उपलब्धि में शिक्षण व प्रशिक्षण में प्रयोग करना है। रक्तदान के क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज सुधार, रोगोपचार,नैतिक मूल्यों की शिक्षा एवं हिंदी का प्रचार करना हैl

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