या खुदा हम पे भी तू अपनी इनायत करदे ,
दर्द और ज़ुल्म की दुनिया पे तू रहमत कर दे।
कैसी दुनिया है ये,बेटी जहाँ महफूज नहीं,
ऐसी दुनिया में तो, अच्छा है कयामत कर दे।
मैं वो हीरा हूँ जिसे आज तराशा न गया,
ले ज़मीं से तू उठा,तय मेरी कीमत कर दे।
दिल से है तंग,मुहब्बत से परे हैं जो लोग,
या ख़ुदा ऐसे दिलों की,तू मरम्मत कर दे।
रोज़ जीते हैं हम,रोज़ ही मरते भी हैं,
क्यों न इक बार ही रुह रुखसत कर दे।
रोशनी पर भी, कैसा पहरा लगा रखा है,
तोड़ पहरों को तू,दुनिया की हिफाज़त कर दे।
ये वो इंसान है,जो रोज़ बदलता है खुदा,
इनके दिल में भी,अब एक हुकूमत कर दे।
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
अकल्पनीय
Bahut khoob