दुष्कर्म काण्ड:शीघ्र निर्णय यानि अप्रत्यक्ष भय

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संसार का नाम है भ्रमण,संस धातु से बना है जिसका अर्थ है संसरण करना,और संसार में भ्रमण का कारण है मोहl मोह के दो रूप हैं राग और द्वेषl प्रत्येक जीव प्रत्येक क्षण किसी से राग करता है, और किसी से द्वेष करता हैl मोह एक तराजू या तुला है,जिसके दो पलड़े राग या द्वेष हैंl जो पलड़ा भारी होता है,वह नीचे जाता है और जो हल्का होता है ऊपर रहता हैl हम कोई सौदा खरीदते हैं,तो विसम पलड़े से नहीं खरीदते,जब पलड़े सामान होते हैं,तब ही खरीदते हैंl इसी प्रकार स्वस्थ और बीमार में इतना अंतर होता है-जब हमारे शरीर में दोष,धातु,मल समान अवस्था में होते हैं,तब स्वस्थ और विषम हो तो बीमारl जैसे किसी को कम या ज्यादा रक्त दाब हो तो रोग,और समान अवस्था में लाना चिकित्सा होती हैl
विश्व में पाप और कषाय के कारण हम भटक रहे हैंl पाप पांच प्रकार के होते हैं,जैसे-हिंसा,झूठ,चोरी,कुशील और परिग्रह और कषाय,जिससे आत्मा कलुषित होती जहां जैसे क्रोध, मान,माया-लोभl इस प्रकार हम कषाय और पाप के कारण दुखी होते हैंl आश्चर्य की बात है कि,विश्व के सब देशों के कानून मात्र पापों के लिए ही बने हैंl इनके अंतर्गत सब कानून आ जाते हैंl समाचार पत्रों में,टी.वी.में और साहित्य में इन पांच पापों की ही चर्चा होती हैंl ये पाप मनुष्यों के जन्म से चल रहे हैं,इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों को वेद,पुराण ,शास्त्रों में वर्णन करना पड़ा और इनके लिए ही हमारे देश में भी संविधान बना हैl कषाय के लिए ये मन से होते हैं,इनके लिए मनोविकार भाव मानते हैंl
इन पापों का इलाज़ अहिंसा,सत्य ,अचौर्य,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह हैंl ये हमारे मानक हैं,इनके पालन से हमरे स्वयं,परिवार समाज और विश्व में शांति का वातावरण बनता हैंl इनके साथ हमारा खान-पान,आहार- विहार,परिजन-परिवेश का भी प्रभाव धरम और पाप के लिए जिम्मेदार होता हैl कभी-कभी अधिक विपन्नता या समृद्धि भी अपराध को बढ़ावा देती है,नशा-व्यसन-कुटैव भी मनुष्य को पददलित या पद्व्युचित कर देता हैl ये सब पाप सनातन और शाश्वत हैं,और रहेंगेl धरम उनके निराकरण के लिए है, यदि मानव माने तोl
वर्तमान में सामाजिक व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं-आबादी का विस्फोट,अतिशीघ्र धन्नासेठ बनना और नवधनाढ्य की देखा-देखी से कुसंस्कार से अधिक प्रभावित होना यह आम बात हो गई हैंl जब तक हम अपनी बुनियाद से नहीं जुड़ेंगे,तब तक विकृत्यों पर अंकुश लगाना संभव नहीं होगाl आज हम सब पैसा,सुख-सुविधाओं की दौड़ में कुछ नहीं देख रहे हैं,बस अन्धाधुकरण कर रहे हैंl
दुष्कर्म यानि बलात्कार की घटनाओं ने मानव समाज को आंदोलित कर दिया है,और ये आजकल बहुतायत से हो रही है और होंगीl इसका कारण अश्लील फिल्मों का देखना,नशा करना,अधिक उम्र तक अविवाहित रहना-शादी न हो पाना या खाने-पीने की वस्तुओं से खुद को इतना उत्तेजित करना कि,ये शारीरिक क्रियाओं को शीघ्र प्रभावित करती हैंl आजकल १० वर्ष की बच्चियों को मासिक धरम होने लगा तो लड़कों को कामातुर वातावरण मिल रहा है और फिर कुछ अधिक उच्छृंखलता के होने से बलात्कार की घटनाएं होती हैंl ये घटनाएं युवा या अन्य मात्र क्षणिक सुख के लिए करते हैं और इसमें वे मात्र अपनी हवस पूरी करते हैं, इससे अधिक कुछ नहीं होता हैl ये घटना किसी भी पक्ष को पूर्ण तृप्त नहीं करती,बलात उक्त कर्म एकपक्षीय होता हैl इसमें रज़ामंदी का अभाव होने से अपराध की श्रेणी में आता है,नहीं तो ये बहुत सामान्य घटना होती हैl
हाल ही में मध्यप्रदेश के भोपाल की यह घटना अत्यंत वीभत्स कहने योग्य थी,जिसका निर्णय न्यायालय ने बहुत त्वरित गति से करके दोषियों को दण्डित किया हैl इस निर्णय से बहुत हद तक समाज में भय व्याप्त होना चाहिए,पर होना असंभव ही लगता हैl कारण हमारे समाज में सबसे पहले स्वतंत्रता के साथ स्वच्छंदता का वातावरण इतना अधिक व्यापक हो गया है कि,वर्तमान में आप ३ साल के बच्चे के हाथ से टी.वी. का रिमोट नहीं ले सकते,तो फिर जो बच्चे-बच्चियां घर में रहकर या घर से बाहर रहकर बिना भय के रहते हैं,उनमें इसका प्रभाव होने की संभावना अधिक होती हैl आजकल तो घर में कोई भी उम्र सुरक्षित नहीं है,पूरा समाज मात्र इन पापों को अंगीकार करने में जुटा हैl
सामाजिक सुधार की सोच अब उपयुक्त नहीं होगी,यहां अब व्यक्तिगत सुधार के साथ स्व-सुरक्षा को अपनाना पड़ेगाl इसमें कोई भी वर्ग अछूता नहीं है,पर असर महिलाओं पर अधिक पड़ता हैl पुरुष वर्ग बलिष्ठ होने से यह पाप करता है,और उसे भोगना भी पड़ता हैl
सामाजिक,पारिवारिक और स्व नियंत्रण का अभाव होने से ये अपराध बहुत हो रहे हैं और होंगेl दरअसल, समाज भयविहीन हो गया हैl जीवन से नैतिकता,चरित्र और धरम की बात करना दकियानूसी या पोंगापंथी विचारधारा को इंगित करती है,जबकि बचाव इनसे ही संभव होगाl
एक क्षण की भूल हमें जिंदगी भर के लिए गुनाहगार बना देती है तो हर क्षण का निरीक्षण-परीक्षण ही हमको सजग बनाता हैl हम बे-गाफ़िल रहने के आदि हो गए, इसलिए पछताते हैंl ऐसे वक़्त में इस इस समय किसको अपना मानें,या न मानें,नहीं समझ पा रहे हैंl अभी तो और अधिक विकृतियां आएँगी,अभी वर्तमान का आकलन है कि हमें स्वयं की सुरक्षा करनी होंगी,क्योंकि दुनिया तमाशबीन बनी रहेगीl

                                #डॉ. अरविन्द जैन (भोपाल)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।