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सूरज,पृथ्वी,चाँद,घूमते तेरे कारण।
तुझमें ही है आदि अंत,तुमसे जग तारण॥
माया मत्सर मोह लोभ सब तेरे अनुचर।
रोम-रोम अधिकार होय जल-थल या नभचर॥
काल अकाल विकाल तुम्हारे हैं सब साधन।
कर्म भाग्य दुर्भाग्य बसे तेरे ही आनन॥
भटक रहा मैं हाय,मार्ग दिखलाना होगा।
अवध न जाए हार,अवधपति !आना होगा॥
#अवधेश कुमार ‘अवध’
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