संस्मरण-रेखा

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sarla
दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं,कुछ ऐसे कि,जिनके सान्निध्य में भटका हुआ भी पथ पा जाए,कुछ ऐसे कि मंजिल तक पहुँचकर भी इंसान पथ भूल जाए। हमें ऐसे लोगों की पहचान अवश्य करनी चाहिए।
मुझे याद आता है-जब मैं पहले ही दिन विश्वविद्यालय गई थी,मैं काफी डरी हुई थी। वहाँ
लड़के-लड़कियाँ एकसाथ पढ़ते थे। मैंने अभी तक लड़कियों के स्कूल और महाविद्यालय में ही पढ़ाई की थी। साथ ही मेरे साथ आने-जाने वाली कोई भी लड़की नहीं थी। मैं बिलकुल अकेले कक्षा तक पहुँचीl वहाँ लड़के ज्यादा थे,और लड़कियां बहुत कम। तभी एक सुन्दर-सी लम्बी लड़की मेरे पास आकर बैठ गई। देखने में भी काफी अमीर लग रही थी। मैं चुपचाप बैठी थी तभी प्रवक्ता वहाँ आए,उन्होंने सभी से परिचय पूछा ,थोड़ा बहुत नैतिक मूल्यों पर बात की और चले गए।
खाली पीरियड होते ही वह मुझसे बोली-तुम्हारा नाम क्या है ? कहाँ से आती हो ? मैं थोड़ा सहज हो गई,मैंने भी उसके बारे में पूछा-वह विश्वविद्यालय के पास ही रहती थीl उसके अंदर किसी तरह का घमंड नहीं था।
धीरे-धीरे मेरी उससे मित्रता हो गई। जैसे ही उसे पता चला कि,मैं बहुत ही दूर से पढ़ने विश्वविद्यालय आती हूँ और मुझे दो घंटे बस का इंतजार करना पड़ता हैl वह जबरन मुझे घर ले गई। वहाँ उसकी मम्मी ने भी मुझे रुकने के लिए कहा। अब छुट्टी होने के बाद मैं उसी के घर पर रुक जाती और बस का समय होने पर चली जाती। उसकी मम्मी रोज दोपहर का खाना खिलातीं और बड़े ही प्यार से बात करती
थीं। अगर उसके घर पर रुकने की व्यवस्था न होती तो शायद मैं नियमित रूप से पढ़ने नहीं जा पाती,लेकिन उसी के कारण मैं नियमित रूप से विश्वविद्यालय जा सकी और अपनी पढ़ाई पूरी कर सकी। मैं उसकी सदा ही आभारी रहूँगी।

                                                            #डॉ.सरला सिंह

परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।