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स्नेह संचित
घना वृक्ष है परिवार…,
कई रिश्तो में गुंथा हुआ
सुन्दर हार है परिवार…।
जैसे वृक्ष की डालियाँ
फूल, पत्तियां ,फल ,छांव,
ऐसे ही घर के बड़े बुजुर्ग
स्नेह व् संरक्षण की छांव देते,
सहेजते पल्ल्वित करते हैं परिवार…।
जिनकी छत्रछाया में
खेलता बढ़ता निश्छल बचपन,
उन्मुक्त यौवन और
धूप-छाँव गुनता है परिवार…।
एक दूसरे का मानसिक संबल
ठोकर लगने पर,
थाम लिए जाने का
विश्वास है परिवार…।
खुशियों के साथ
ग़मों का भी हिस्सेदार,
सुकून,आत्मा का पोषण
है परिवार…।
बस मांगता है थोड़ा-सा,
स्नेह,समझ,त्याग,समर्पण और
विश्वास ये परिवार…।
सहेजती हूँ मैं इसे,
मन प्राण से अपने…।
मेरे होंठों की मुस्कराहट व
आत्मसंतोष का पर्याय है परिवार…।
सहेज लेना आप भी इसे,
सिंचित करना स्नेह से…।
क्योंकि उखड़ जाने पर,
वृक्ष का पुनर्स्थापन सम्भव नहीं…।
भावी पीढ़ी को हमारी और से,
यही अनमोल उपहार है परिवार…॥
#शिरीन भावसार
परिचय:शिरीन भावसार का जन्म नवम्बर १९७५ में तथा जन्मस्थान-इंदौर (म.प्र.) हैl आपने एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) की शिक्षा रायपुर (छग) में ली है,और शादी के बाद वर्तमान में वहीँ निवासरत हैंl कार्यक्षेत्र की बात करें तो आप कला-शिल्प तथा लेखन में सक्रिय होकर सामाजिक क्षेत्र में दृष्टि बाधित संस्था और विशेष बच्चों की संस्था से जुड़ी हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-नई कविता,छंदमुक्त कविता,मुक्तक एवं ग़ज़ल हैl कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं सहित वेबपत्रिका में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-अपने विचारों को दृढ़ता से रखना,सामाजिक मुद्दों को उठाना,मनोभाव की अभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि हैl
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