प्रकाश पर्व का अभिनन्दन,
सबका ज्योतिर्मय हो अंतर्मन।
हम सब मिलकर दीप जलाएं,
इस धरा से अंधेरा दूर भगाएं।
शुद्ध करें निज मन मन्दिर को,
छोड़ें व्याप्त क्रोध-अनल को
त्यागें मन से लालच-विष को।
विश्वात्म बनें! आत्म मिटाकर,
परमात्म बनें! `मैं` को त्यागकर।
ज्योति पर्व की इस बेला में,
मन का आंगन आलोकित हो।
दीपक जले हर एक दिल में,
सबका तन-मन प्रफुल्लित हो।
पग-पग स्नेह का दीप जले,
लौ से सबका अंधियारा मिटे।
मन का अंधेरा चलें मिटाने को,
फैलाकर अपनी बंधी सीमाओं को।
अपनेपन का सबको अहसास दिलाएँ,
मन के बैर भाव को जड़ से मिटाएँ।
क्योंकि,
अंधकार में जब डूबा हो पड़ोसी,
तो हम अपना घर कैसे सजाएँ।
इसलिए,
भेदभाव,ऊँच-नीच की दीवार ढहाकर,
हम सब मिल-जुलकर पग बढ़ाएँ।
सबको समर्पित ये दीपमालिका,
और श्रृंगारित ज्योतिर्मय तन-मन।
नवल ज्योति से नवप्रकाश हो,
चहुँदिशा यश,वैभव,सुख बरसे।
केशव की ये प्रार्थना,उपजे ज्ञान प्रकाशl
प्रकाश के इस पर्व में,हो सबमें उल्लासll
#केशव कुमार मिश्रा
परिचय: युवा कवि केशव के रुप में केशव कुमार मिश्रा बिहार के सिंगिया गोठ(जिला मधुबनी)में रहते हैं। आपका दरभंगा में अस्थाई निवास है। आप पेशे से अधिवक्ता हैं।