आत्मिक सुख आशीष दे,मन में भरे मिठास।
त्यौहारों में अग्रणी,आश्विन-कार्तिक मास॥
जग-जननी माँ अम्बिके,लेकर रुप अनेक।
भक्तों को देती अभय,मिटा पीर प्रत्येक॥
विजयादशमी पर्व में,बने जगत श्रीराम।
सत्य-धर्म की जीत से,गूँजे चारों धाम॥
सुधा-सिन्धु सम चन्द्रमा,शरद ऋतु की रात।
हर ले जीवन की व्यथा,सुने हृदय की बात॥
राज सुहाग अखंड हो,प्रिय का हो नित साथ।
चन्द्रदेव-सी कान्ति हो,कहे सुहागिन माथ॥
श्री शुभ विद्या बुद्धि दे,जीवन में विश्वास।
धन के देव कुबेर भी,रहें सभी के पास॥
अंधकार-दुख हम हरें,बने खुशी के दीप।
जैसे मुक्ता स्वाति-जल,मुस्काए पा सीप॥
तिल-तिल कर जलकर स्वयं,जग में भरें प्रकाश।
दीपक-बाती साथ मिल, तम का करें विनाश॥
गिरिधारी को प्रेम से,सदा लगाओ भोग।
कर्म योग संदेश दे,हरें कृष्ण हर रोग॥
युग-युग तक जीवित रहे,भ्रात हृदय में प्यार।
चौक पूजकर माँगती,बहन यही उपहार॥
चंदन-टीका माथ पर,हिय में प्रेम अगाध।
खुशियाँ आजीवन मिलें,भाई की यह साध॥
देवोत्थानी पूज्य तिथि,श्री हरि-व्रत त्यौहार।
पञ्च ईख मिष्ठान को,प्रभो करें स्वीकार॥
हर-हर गंगे बोलकर,गहरे जल में पैठ।
तन-मन निर्मल भाव हों,माँ की गोदी बैठ॥
प्रेम हृदय की भावना,आपस का व्यवहार।
चिरंजीवी हो हर खुशी,कहें सदा त्यौहार॥
मन से मन का मेल हो,जिए सदा विश्वास।
बरसाए अनुराग प्रिय,रहे दूर या पास॥
#शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’