मुंबईl बैंक ऑफ बड़ौदा तथा वैश्विक हिंदी सम्मेलन के तत्वावधान में सितंबर में बैंक ऑफ बड़ौदाके मुख्यालय में ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ विषय पर संगोष्ठी रखी गईl मुख्य अतिथि दक्षिण अफ्रीका ‘हिंदी शिक्षा संघ’ की अध्यक्ष प्रो.उषा शुक्ला थीं।
इस संगोष्ठी में प्रो.शुक्ला ने बताया कि,भारत से कभी मजदूर बनकर गए भारतवंशियों द्वारा वहां हिंदी शिक्षा संघ की स्थापना की गई है। उन्होंने कहा कि,‘हिंदी शिक्षा संघ’ द्वारा दक्षिण अफ्रीका में ५५ स्थानों पर हिंदी पढ़ाई जाती है। शिक्षण कार्य हिंदी शिक्षा संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा सेवाभाव से नि:शुल्क किया जाता है। ‘हिंदी शिक्षा संघ’ द्वारा वहां रेडियो स्टेशन भी बनाया गयाहै,जिस पर हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं के गीत एवं कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि,हिंदी प्रसार व शिक्षण के कार्य में ‘हिंदी शिक्षा संघ’ अपनी संस्कृति और संस्कारों की रक्षा के लिए भाषा शिक्षण का कार्य करता है।
मॉरीशस से आए वरिष्ठ साहित्यकार राज हीरामन ने कहा कि,हिंदी मॉरिशस की रग-रग में बसी है। उन्होंने कहा–`एक बार जहाज खराब होने के कारण जब महात्मा गांधी उनके छोटे से द्वीप पर पहुंचे थे,तब भारतवंशी वहाँ केवल मजदूरी करते थे। महात्मा गांधी ने उनसे कहा कि,वे बच्चों को पढ़ाएँ और राजनीति में भी जाएं।उनके इस संदेश के बाद भारतवंशियों ने वहां पर अपने बच्चों को पढ़ाना शुरु किया और राजनीति में भी आए।इसलिए आज वहाँ के शासन पर भारतवंशियों का शासन है,और उनके देश मैं हिंदी शिक्षण अनिवार्य है।`
दिल्ली से आए संपादक राकेश पांडेय ने विभिन्न देशों में हिंदी में हो रहे कार्य और वहां की स्थितियों की जानकारी दीl आपने कहा कि,हिंदी का जो रूप प्रचलित है,हमें उसे उसी रुप में स्वीकार करना चाहिए,यह नहीं कि हम खड़ी बोली का स्वरुप उन पर थोपें।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कार्यक्रम में कहा कि,हिंदी के भविष्य को समझने से पहले वर्तमान प्रगति पर नजर डालनी आवश्यक है।उन्होंने बताया कि,स्वतंत्रता के समय देश के प्राय: सभी लोग मातृभाषा में पढ़ते थे,लेकिन अब छोटे-छोटे गाँवों तक भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल पहुंच चुके हैं।हम हिंदी को विश्वभाषा बनाने की बात कर रहे हैं,लेकिन वह हमारे घरों से ही बाहर होती जा रही है। आपने हिंदी के समक्ष खड़ी विभिन्न चुनौतियों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि,यदि समय रहते हिंदीको व्यवहार,व्यापार और रोजगार की भाषा नहीं बनाया गया तो वह आने वाले कल की नहीं,बल्कि बीते हुए कल की भाषा बनकर रह जाएगी।
संचालन बैंक ऑफ बड़ौदा के उप महाप्रबंधक तथा हिंदी सेवी जवाहर कर्णावट ने कियाl उन्होंने हिंदी के प्रयोग के लिए भाषा-प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने बैंक ऑफ बड़ौदा मैं ग्राहक सेवा में हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के लिए किए गए अभिनव कार्यों की जानकारी भी दी।
अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ साहित्यकार तथा संपादक डॉ. हरीश नवल ने विभिन्न देशों में हिंदी के प्रयोग के अपने अनुभवों को बांटते हुए कहा,‘हमें बदलते समय के साथ बदलते समय की हिंदी को स्वीकार करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि,सभ्यता के विकास क्रम में संस्कार नष्ट होते ही हैं।हमें हिंदी को जटिलता से बचाते हुए सरल और सहज बनाना होगा।`
संगोष्ठी में फिल्म लेखक संजय जोशी तथा आशुतोष देशमुख सहित प्रो. चरणजीत सिंह,श्रीमती विभा रानी,श्रीमती नीति श्रीवास्तव आदि बैंकों के अनेक अधिकारी तथा अनेक हिंदी प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम में जाने-माने अभिनेता तथा ‘साराभाई वर्सेज़ साराभाई’ में रोशेश की भूमिका से लोकप्रिय अभिनेता राजेश जी ने भी उपस्थिति दर्ज की।
संगोष्ठी के प्रारंभ में बैंक के महाप्रबंधक राधाकांत माथुर ने स्वागत वक्तव्य दिया। आभार प्रदर्शन पुनीत मिश्र ने किया।
(साभार-वैश्विक हिंदी सम्मेलन)