नफरतें दिल में ले के रखते हैं,
लोग जाने ये कैसे मिलते हैंl
देखकर हमको लोग जलते हैं,
गुनगुनाऊँ तो फूल खिलते हैंl
अब मुकम्मल न बात होती है,
लोग टुकड़ों में बात करते हैंl
खार रस्ते पे मत बिछाओ तुम,
नंगे पांवों से हम गुज़रते हैंl
वो नशा आज भी है आँखों में,
देख लें गर न फिर सम्हलते हैंl
सारा गुलशन महकने लगता है,
जब दिलों में गुलाब खिलते हैंl
मैं भला क्या मिसाल दूं तेरी,
देखकर आईने चटकते हैंl
मुश्किलों से भी डर नहीं लगता,
मुश्किलों से तो हम निखरते हैंl
गम का तुमको हिसाब कैसे दें,
हम खुशी का हिसाब रखते हैंl
दिल्लगी से ‘रऊफ’ क्या पाया,
सैकड़ों दर्द दिल में पलते हैंll
परिचय : अब्दुल रऊफ ‘मुसाफ़िर’ को लिखने का शौक है। आप मध्यप्रदेश के सेंधवा(जिला बड़वानी) में रहते हैं।