मित्रों नमस्कार, मेरा यह लेख धन्यवाद स्वरूप मेरे उन अनुयायियों (फालोअर्स)नहीं ,बल्कि उन विरोधियों को समर्पित है जिन्होंने अपने पारदर्शी लेकिन सच से परे होने वाले लेख पर मुझे यह लिखने के लिए प्रेरित किया है। हमेशा से ही सोशल मीडिया पर ऐसे चिकित्सा लेखों की भरमार रही है जिसमें ऐसे-ऐसे घटक या निर्माण विधि लिखी होती है जो केवल अनुभवी चिकित्सक भी तभी बना सकता है जब उसके सटीक प्रतिनिधि द्रव्यों(सब्स्टियूड) की _उसको जानकारी हो व असली की पहचान के साथ-साथ गुरू सानिध्य में रहकर अनेको बार यह औषधि बनाई हो। असल में ऐसे सभी लेख लिखने के पीछे उनके लेखकों की मँशा यह होती है कि किसी औषधि के सभी घटक व उसकी निर्माण विधि लिखकर सामने वाले के मन में हमारे प्रति पारदर्शिता का भाव उत्पन्न होगा,पर सच्चाई यह है कि जब ऐसे लेख से प्रेरणा लेकर व्यक्ति उस नकली सामान के सहारे(जो जड़ी-बूटी विक्रेता विलुप्त या मनगढ़त नाम होने की स्थिति में कुछ भी दे देता है)व्याख्यान औषधि बनाना चाहता है तो निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगता है। ऐसे में असली खेल की शुरुआत होती है और व्यक्ति या तो इसके चिकित्सक लेखक को फ़ोन कर यह दवा खरीदने की मँशा जाहिर करता है, जिसमें उसे ऐसे घटक के भी दाम चुकाने होते हैं जो केवल लिखे होते पर वास्तविकता में डाले नहीं जाते या फ़िर वह ‘आयुर्वेद बेकार है’, ‘धीरे धीरे काम करता है’ और ‘ऐसी दवा बनाना खाली लोगों का काम है’ आदि जुमले सबके सामने फ़ोड़कर चुप बैठ जाता है। इस तरह से आयुष चिकित्सा की बहुत बड़ी बदनामी का कारण हम चिकित्सक भी हैं,जो गलत व्यापारिक मंशा के चलते बहुत आसान लगने वाली रोटी बनाने की विधि या दूध दुहने की विधि फ़ोन पर ही बता देते हैं। यह बिल्कुल उस तरह से ही है,जैसे पहली बार दूध निकालने की कोशिश पर गाय माता लात मारेगी और फ़िर मूत्र करेगी। इस पर हताश होकर व्यक्ति यही कहेगा कि,’झूठ बोलते हैं,गाय कोई दूध नहीं देती है ,वह तो लात मारती है या फ़िर मल-मूत्र करती है।
मित्रों! उदाहरण में हास्य रस जरूर है, लेकिन यह बहुत विचारणीय है, क्योंकि किडनी फ़ेल,कैंसर आदि जैसे भयावह रोगों तक की सफल चिकित्सा इन्टरनेट पर ही बताने वाले और पढ़कर अपना व अन्य का इलाज करने की इच्छा रखने वाले भाईयों को बताना चाहूँगा कि,आयुर्वेद में विभिन्न क्षेत्र,प्रकृति और ऋतु आदिनुसार आलू तक के बारे में मत बदल जाते हैं। शुगर की दवा में डलने वाले एक घटक विजयसार जैसी लकड़ी डली दवा अगर शुगरग्रस्त पतले व्यक्ति को खाने को दी जाए, तो यह उसके शरीर में प्रयुक्त वसा को खुरचकर उसे और जीर्ण-क्षीण कर सकती है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिस कारण से मैं ऐसे गलत,निराधार,योगभ्रन्श किए हुए नुस्खों का विरोध करता हूँ। निजी नम्बर पर बहुत बार उक्त लेखकों की अभद्रता का पात्र बनता हूँ व कोई संबंधित तथ्य न दे पाने की स्थिति में बाकी समूह पर वो किसी भी तरह मेरा उपहास उड़ाने की बाँट जोहते हैं।
भगवान धन्वंतरि की कृपा मुझ पर बनी रहे और मैं जनमानस के हित हेतु ऐसे नुस्खों का विरोध करता रहूँगा। सभी चिकित्सक भाईयों व जनसाधारण से विनती करता हूँ कि, मेरे इस लेख को निजी तौर से न लें व सभी सम्मानितों के लिए ऐसा प्रयुक्त नहीं मानें। आप ध्यान रखें कि, इंटरनेटीकरण के इस युग में व्यापारिक लाभ हेतु आसान प्रचार द्वारा जनसेवा करते हुए वाजिब लाभ लेना बुरा नहीं है,बानगी से अपनी बात रखें,लेकिन आकर्षण पैदा करने के लिए अधूरे,गलत,विलुप्त नाम वाले नुस्खों का सहारा न लें। सभी कृपया अपने व्यवसाय की गरिमा को बनाएं व गलत-जटिल नुस्खों का सहारा न लेते हुए या तो बहुत सरल-सटीक नुस्खे प्रचारित करें और वाजिब लाभ लेते हुए अपनी औषधि प्रचारित करें।
#डॉ. निशान्त गुप्ता आयुष
परिचय : शामली (उत्तरप्रदेश) के गाँधी चौक में चिकित्सा क्षेत्र में सेवारत डॉ. निशान्त गुप्ता आयुष, दर्द,गुर्दा-मूत्र रोग विशेषज्ञ हैं और इस क्षेत्र में फैली भ्रांतियों कॊ दूर करने में प्रयासरत हैं। इस के लिए जागरूकता सम्बन्धी आपके कई लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।