ये माफ़ीनामा, महज इक
माफ़ीनामा है..
कोई निज़ाम का सूरज नहीं,
कोई हौंसले की लहलहाती
फसल नहीं,
और न ही आने वाले वक़्त की किस्मत है ये..
ये महज़ माफ़ीनामा है,
महज माफ़ीनामा।
एक काल्पनिक दुनिया में लिखा
गया माफ़ीनामा ,
जो फ़िर वक्त मिट गया,लेकिन जिसकी सदा न मिटी, न मिटेगी
लोगों के दिलों-दिमाग से।
ये माफ़ीनामा सिर्फ माफ़ीनामा है,
गोली-बारूद के खौफ़ से लिखी गई
नाज़ायज़ जिल्लत नहीं,
ये घाटी में अमन के लिए किए गए
हवन की खुशबू है।
ये माफ़ीनामा महज इक
माफ़ीनामा है…
(यह नज़्म ज़ायरा वसीम के माफीनामे पर लिखी गई है)
#माहीमीत
परिचय : माया नगरी मुम्बई में ‘माहीमीत’ नाम से लिखने वाले श्याम दाँगी मध्य प्रदेश के होकर इंदौर में पत्रकारिता में भी हुनर दिखा चुके हैं। फिलहाल भी यह मुम्बई के अनेक पत्रों में सक्रिय लेखन से जुड़े हैं तो पटकथा लेखन में लगातार सक्रिय हैं।इनकी लिखी हुई कहानियाँ ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पेट्रोल’ में आ चुकी हैं। यह थिएटर में भी सक्रिय हैं और हाल ही में मंटो पर एक नाटक किया था, जिसमें मंटो का किरदार इन्होंने ही निभाया था।