एक पहेली स्त्री…,
जलाया स्वयं को जिसने
जग उज्जवल किया
चन्द्रकलां की भाँति
वही तो है
उस दीपक की बाती l
सैंतकर स्वयं में
जिसने तुम्हें तुमको दिया l
वही तो है,
कोख
भीतर जिसके तुमने
वस्त्रहीन कुछ पल जिया l
चंद्रप्रभा से निर्मित,
जिसके आंचल शीतल
वही तो है,
दिवास्वप्न
जिसकी छांव में तुमने भी
सोया किया l
तपकर आजीवन जिसने,
अग्नि को पिया
वही तो है,
सुरभि
जिसने तुम्हें सुरभित किया
प्यासी हुई स्वयं प्यास है जिसने,
मर्यादा का मान कियाl
हाँ, वही तो है,
स्त्री जाति
जो तुम्हें नहीं भाती l
जिसे तुमने कुछ नहीं दिया,
कुछ भी तो नहीं दिया।
दीए का रास…
जाग रहा
नहीं पता किससे,
या कि स्वयं से
भाग रहा
हां,पर जाग रहा l
देख रहा,
बात को,
उड़ रही जो रोज
काली स्याह रात को,
रेख रहा
देख रहा l
पता नहीं क्यों,
शायद उदास हूँ
या कि बन गया
दीए का रास हूँ…
अब कहां किसी के लिए खास हूँ l
मैं हूँ काला,
शायद यह भी सही
पर उजाला,
शायद है,या कि नहीं l
फिर भी जीवन माँग रहा,
हां मैं जाग रहा।
स्त्री की दृष्टि…,
वाह रे वाह तुम्हारी दृष्टि l
वासना से ओत-प्रोत,
जैसे गली-सड़ी कोई पट्टी
जिसे छुए बस जाय वह
गला दे सड़ा दे,
दीठ की अम्लीय वृष्टि..
वाह रे वाह तुम्हारी दृष्टि l
बढ़ जाए गति कुपोषण की,
चाहे भस्म हो जाएं किसान कई
गरीबों के उजड़ जाए,
घर-सृष्टि
यही तो है तुम्हारी संतुष्टि,
वाह रे वाह तुम्हारी दृष्टि l
ले क्यों नहीं लेते उधार तुम,
किसी स्त्री से ‘दृष्टि’l
होती है जिनमें ममता,
संवेदनाओं का अगाध सागर बहता है
दुख देखने का साहस,
आशा की किरण त्याग का आँसू रहता है l
राधा,मीरा,मदर टेरेसा,मलाला,
सब दृष्टि ही तो हैं
स्त्री की दृष्टि स्वयं में,
स्त्री ही तो है l
तुम भी हो जाओ एक स्त्री!
बदल लो अपनी दृष्टि,
हाँ,बदल लो अपनी दृष्टि l
तरक्की…..
एक गाँव,
जहाँ थी मिला करती
नरम मुलायम मिट्टी l
बने मकान जिससे हुआ करते
चिकने चुपड़े सौंध-सुगंधित,
रहा करते जिसमें
मिट्टी के इंसान, आंनदित,
शहर हो गया-
हो गए मकान सारे पत्थर के,
और इंसान पत्थर दिल अमर्यादित।
#अजय आर. मिश्र ‘धुनी’
परिचय : अजय आर. मिश्र ‘धुनी’ झारखण्ड राज्य के धनबाद से हैं l जन्मतिथि- ७ सितम्बर १९८४ और जन्मस्थान धनबाद ही है l इंटर तक आपने पढ़ाई की है और पुजारी का कार्य करते हैं l सामाजिक क्षेत्र में आप संस्कार भारती साहित्य से जिला स्तर पर जुड़े हुए हैं l कविता रचना आपकी रूचि और विधा है l आप लेखन को जीविका का उद्देश्य बनाने के लिए अग्रसर हैं l