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जैन मुनियों के बारे में बहुत से लोगों को जानकारी न होने के कारण बहुत सारी गलत धारणाएं मन में व्याप्त हैं,जिसके कारण लोग उन्हें सही ढंग से समझ नहीं पाते हैं और भला-बुरा कहते हैं,जबकि हकीकत कुछ और ही होती है। वैसे तो उनके बारे में हम जैसा कोई भी श्रावक कुछ भी नहीं लिख सकता है क्योंकि, वो इतने महात्यागी और तपस्वी होते हैं। फिर भी छोटा प्रयास कर रहा हूँ,जिसके कारण लोगों की कुछ शंकाओं का शायद समाधान हो सकेगा-
संत न होते जगत में तो जल जाता संसार।
सुख-शांति होती नहीं मचता हाहाकार॥
जाकी रही भावना जैसी,
गुरुमूरत तिन दीखही तैसी।
सरल,सहज,यथाजात,मुद्राधारी, बालकवत,निर्विकार,दिगम्बर जैन साधुओं को देखने मात्र से विभिन्न मनुष्यों में विभिन्न प्रकार के मनोभाव, शंका,कुशंका,तर्क-वितर्क उठना स्वाभाविक है। उनके विभिन्न प्रकार के मनोभाव एवं शंकाओं के समाधान के लिए तर्क पूर्ण नैतिक एवं आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से हमें निम्न सत्य तथ्य पर विचार करना चाहिए।
दिक्+अम्बर=दिगम्बर,अर्थात दिक् = दिशा,अम्बर=वस्त्र।
दिक् एवं अम्बरं यस्य सः दिगम्बरः।
जिनका दिक्अ,र्थात दिशा ही वस्त्र हो वह दिगम्बर है। दिगम्बर का अर्थ यह भी उपलक्षित है,जो अंतरंग-बहिरंग परिग्रह से रहित है वो निर्ग्रन्थ है। निर्ग्रन्थता का अर्थ जो क्रोध,मान,माया,लोभ,अविद्या, कुसंस्कार काम आदि अंतरंग ग्रंथि तथा धन धान्य,स्त्री,पुत्र सम्पत्ति,विभूति आदि बहिरंग ग्रंथि से जो विमुक्त है,उसको निर्ग्रन्थ कहते हैं।
वे आजीवन ब्रह्मचर्य की साधना करते हैं अर्थात मन में किसी भी प्रकार का विकार नहीं लाते,इसलिए नग्न रहते हैं।
ऐसे संत हमेशा नंगे पैर पैदल ही चलते हैं। दिनभर (२४ घंटे) में एक ही बार एक ही स्थान पर खड़े होकर अपने हाथों (अंजली) में ही पानी व शुद्ध बना हुआ भोजन लेते हैं। अगर भोजन में कोई भी जीव अथवा बाल आदि निकल आए तो तत्काल भोजन का त्याग कर देते हैं और अगले २४ घण्टे बाद ही आहार-पानी लेते हैं।
हाथ में मयूर पंख की पिच्छी धारण करते हैं,जिससे सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों को भी हटाने में उन्हें कष्ट न हो,उनकी रक्षा हो। उठने-बैठने में वे इसी पिच्छी से जीवों को हटाते हैं। इसी पिच्छी को लेकर वे आजीवन धर्मध्यान साधना करते हैं एवं भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
अपनी आत्मशक्ति को बढ़ाने के लिए केश लोच करते हैं,अर्थात सिर,दाढ़ी व मूंछ के बालों को दो महीने में हाथ से निकालते हैं।
कमण्डल में छना गर्म किया हुआ पानी रखते हैं। वह पानी सिर्फ शारीरिक शुद्धि के लिए काम में लेते हैं। कमण्डल नारियल का बना होता है। ये संत अपनी आत्मशक्ति को बढ़ाकर तपस्या करके संसार के जन्म-मरण से मुक्त होकर परमात्मा शक्ति को पाते हैं। तो चलिए, आइए, हम भी इनके चरणों में नमस्कार कर कुछ क्षण सुख और शान्ति को पा लें,क्योंकि इन दिगम्बर साधुओं का सत्संग करोड़ों अपराधों को हर लेता है।
कहा भी गया है-
‘एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साधु की हरे कोटी अपराध॥’
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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