तुझे तन्हाई से डर लग रहा है,
मुझे रुसवाई से डर लग रहा हैl
अकेले हो तभी घबरा रहे हो,
कहो परछाई से डर लग रहा हैl
यही चाहत तुझे देखूं कभी न,
मुझे बिदाई से डर लग रहा हैl
नहीं छूना तुम्हारे ज़िस्म को भी,
तेरी अंगड़ाई से डर लग रहा हैl
अगर महबूब तुझसा हो जहाँ में,
मुझे हरजाई से डर लग रहा हैl
हमारा दर्द भी बढ़ने लगेगा,
हमें पुरवाई से डर लग रहा हैl
#लकी निमेष
परिचय : लकी निमेष रोज़ा- जलालपुर ग्रेटर नॉएडा(उ.प्र.) में निवास करते हैं | कविताएँ लिखना आपका शौक है|