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जुगनू का सूरज पर कैसे हो जाता अधिकार,
तुम हो प्रीत पराई तो मैं क्यों लिखूं
श्रृंगार।
आधी नींद अधूरे सपने,
इस दुनिया में किसके अपने
कलियाँ क्यों ना मुरझाएंगीं,
सावन भी जब लगते तपने।
न तुमसे कोई समझौता न कोई तकरार,
तुम हो प्रीत पराई तो मैं क्यों लिखूं श्रृंगार।
स्याही का ना दोष है कोई,
कलम ही है जब हमसे खोई
आज वही हम काट रहे हैं,
जो फसलें हमने थीं बोई।
तुम बिन मैं टिक पाता कैसे,तुम ही थी आधार,
तुम हो प्रीत पराई तो, मैं क्यों लिखूं श्रृंगार।
दीप बिना कैसी दीवाली,
मरुस्थल को क्या हरियाली
हों दुनिया में लाख बहारें,
गुलशन क्या होता बिन माली।
जो इकरार नहीं था तुमको कर देतीं इनकार,
तुम हो प्रीत पराई तो मैं क्यों लिखूं श्रृंगार।
हार गया हूँ रोते-रोते,
जाग गया हूँ सोते-सोते
गीत हमारे भाव तुम्हारे,
छंद भी सारे थोथे-थोथे
जितना गहरा इश्क़ था मेरा,उतनी ऊँची हार,
तुम हो प्रीत पराई तो मैं,क्यों लिखूं
श्रृंगार॥
# भरत त्रिपाठी
परिचय: भरत त्रिपाठी का सम्बन्ध मध्यप्रदेश के ग्वालियर से है। इसी प्रदेश के भिंड में १९८८ में जन्म हुआ है।इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग स्नातक तथा एम.टेक.आपने किया है। काव्य में मुख्यतः श्रृंगारिक गीत लिखने के साथ साथ आपने हिन्दी के विभिन्न छन्दों की भी रचना की है। इसमें दोहा,चौपाई ,घनाक्षरी,कुंडलियां और आल्हा प्रमुख है। आपकी कुछ ग़ज़लों को भी सराहना प्राप्त हुई है। देश के बड़े महाविद्यालयों के साथ ही असम में आयोजित काव्य आयोजनों एवं देश के अन्य प्रतिष्ठित मंचों से सफल काव्य पाठ किया है।
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